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________________ श्रीउपदेशपदे ॥ ४९ ॥ इणा बुद्धीइ परिक्खणं तओ तस्स । भणिओ गामो वाहिं सिला विसालत्थि जा तीए ॥ ३२ ॥ मंडियपरिसरदेसं मंडमुद्दंडथंभपव्भारं । कुणहत्ति एव भणिए गामो सो आउलीहूओ ॥ ३३ ॥ पडिया भोयणवेला स रोहगो नो जिमेइ पियरहिओ। मा मे विससंजोगं विराहिया दाहिही जणणी ॥ ३४ ॥ अह सो पसण्णवयणो उस्सूरसमागयं भणइ पियरं । मज्झं महलवेला छुहापिवासापरद्धस्स ॥ ३५ ॥ सुहिओ सि पुत्त ! अइदारुणेत्थ आणा समागया रण्णो । तो तीए वाउलमाणुसाण संजायमुस्सूरं ॥ ३६ ॥ सुणियाए आणाए लद्धरहस्सेण तेण संलत्तं । भुंजह ताव जहिच्छं पच्छा जुत्तं करिस्सामि ॥ ३७ ॥ भुत्तत्तरेण भणिओ सो गामो रोहएण जह खणह । हेट्ठा सिलातलं तह थंभे उत्थंभ देह ॥ ३८ ॥ एवं विहिए संते स मंडवो तेसिं तक्खणं जाओ । आवेइओ य रण्णो कह केण कओ ? निवो भणइ ॥ ३९ ॥ तलभूमीखणणेणं थंभयउत्थंभणेण य कओ सो । भरहतणयस्स रोहगनामस्स मइप्पभावेण ॥ ४० ॥ विहिओ संवाओ से अन्नं आपुच्छिऊण संनिहियं । इय रोहगस्स बुद्धी भणिया उप्पत्तिया नाम ॥ ४१ ॥ एवं अण्णेसुवि मेंढगाइनाएसु जोयणा कजा । उप्पत्तियबुद्धीए जा एयकहापरिसमत्ती ॥ ४२ ॥ अथ पूर्वोक्तसंग्रहगाथाचतुष्टयस्याक्षरार्थः; | उज्जेणिसिलागामे छोयररोहण्णमाउवसणम्मि पितिकोवेतर गोहे छायाकहणेणमब्भुदओ' ॥ ५२ ॥ १ इयं प्राग्-४८-तमेपत्र आगता, तथापि पुनरप्यत्रो लिखितादर्शपुस्तकेषु प्रायः सर्वत्रैवं दृश्यतेतोत्रापि तथैवन्यस्तेति । औत्प भरत० रोह० निद० वि० ॥ ४९ ॥
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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