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________________ याचारांग सूत्र ८६ ] श्रादि से मले या सुगन्धी वस्तु, काथा, बोध, वर्णक, चूर्ण या पद्मक श्रादि का क्षेप करे या ठंडे श्रथवा गरम पानी से म्नान करावे या लकडी से लकडी रगड कर याग मुलगा कर ताप दे । [ ६७ ] और वहा गृहस्थ, उसकी स्त्री, पुत्र, पुत्रवधु, नौकर चाकर और दासदासी आपस में बोलचाल कर मारामारी करें तो उसका मन भी डगमग होने लगे । [७०] र, गृहस्थ अपने लिये श्राग सुलगाचे तो उसको देख कर उसका मन भी डगमग होने लगे । [ ७० ] और, गृहस्थ के घर उसके मणि, मोती और सोना चांदी के कारो से विभूषित उनकी तरुण कन्या को देखकर उसका मन डगमग होने लगे ! [ ६६ ] और, गृहस्थ की स्त्रिया, पुत्रियाँ, पुत्रवधुएँ, दाइयों, वासियों या नोकरनिया ऐसा सुन रखा होने से कि 'ब्रह्मचारी श्रमण के साथ सभोग करने से बलवान, दीप्तिमान, रूपवान, यशस्वी, शूरवीर और दर्शनीय पुत्र होता है, ' उसको लुभाने और डगमगाने का प्रयत्न करें। और, गृहस्थ स्नान आदि से स्वच्छ रहने वाले होते हैं और भिक्षु तो स्नान न करने वाला ( कभी संभव है) त्र से शौच यादि क्रिया करने से दुर्गंधीयुक्त हो जानेसे श्रप्रिय हो जाचे, अथवा गृहस्थ को भिक्षु के ही कारण अपना कार्य बदलना या छोड़ना पड़े । [ ७२ ] और गृहस्थ ने अपने लिये भोजन तैयार कर लिया हो और फिर भिक्षु के लिये वह अनेक प्रकार का खानपान तैयार करने लगे तो उसके लिये भिक्षु को इच्छा हो । [७३] *
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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