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________________ दूसरा अध्ययन शय्या ६६ कैसे स्थान में रहे-कैसे में न रहे ? भिक्षु को ठहरने की जरूरत हो तो वह गांव, नगर या राजधानी में जावे । [६४] वहाँ वह स्थान अंडे, जीवजन्तु और जाला श्रादिसे भरा हुआ हो तो उसमें न ठहरे, परन्तु यदि ऐसा न हो तो उसको अच्छी तरह देखभालकर, माड-बुहार कर सावधानी से ग्रासन, शय्या करके ठहरे । जिस मकान को गृहस्थ ने एक या अनेक सहधर्मी भिनु - या भिक्षुणी के लिये अथवा श्रमणब्राह्मण के लिये छ काय जीवो की हिंसा करके तैयार किया हो, खरीदा हो, मांग लिया हो, छीन लिया हो (दूसरो का उसमें हिस्सा होने से) विना आज्ञा के ले लिया हो या मुनि के पास जाकर कहा हो तो उसको सढोप जानकर भिक्षु उसमें न रहे। और, जो मकान किसी खास श्रमण ब्राह्मण के लिये नहीं पर । चाहे जिसके लिये ऊपर लिखे अनुसार तैयार किया गया हो पर " यदि पहिले दूसरे उसमें न रहें हो तो उसमें न रहे । परन्तु यदि शय्या (मलमें, 'सेन्जा') का अर्थ विछोना और मकान दोनो लिया गया है। wwwwwwwwwwwwwwww.
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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