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________________ ७८ ] लेते समय न सोचे कि अभी तो उसको तैयार करने को पर मना कर दूँगा । और मना करने पर भी गृहस्थ श्राहार- पानी तैयार करके देने लगे तो उसे कदापि न ले [ ५० ] प्राचागग सूत्र भिन्तु, ऐसा समझकर कि प्रमुक स्थान पर विवाह-मृत्यु के कारण भोज है, और वहा अवश्य ही भोज है, ऐसा निश्चय करके भिक्षा के लिये वहां उत्सुकता से दौड़ पड़े तो वह दोष का भागी है । परन्तु योग्य काल मे अलग अलग घर से थोड़ा थोडा निर्दोष श्राहार वह माग लावे | [ १६ ] गृहस्थ के घर भिक्षा मांगने पर ग्राहार के निर्दोष होने से शंका हो तो उसे भिक्षु स्वीकार न करे । [5] गृहस्थ के घर अनेक वस्तुएँ तली जा रही हो तो जल्दी जल्दी जा कर उनको न मांगे, किसी बीमार जाना हो अलग बात है । [ ५१ ] मुनि के लिये किसी गृहस्थ के घर थाहार में से पिड अलग निकाल दिया जाता है । उस या देवमंदिर याद में चारो तरफ रखा जाता देख कर, पहिले खाया या लिया हो तो श्रमण ब्राह्मण उस तरफ जल्दी जल्दी जाते है । उनको देखकर भिक्षु भी जल्दी जल्दी वहाँ जावे तो तो उसको दोष लगता है । [ २५ ] प्रारम्भ में देव as को आदि का निकालते उसको C यह यदि कोई गृहस्थ (अपने घर श्रमण ब्राह्मण श्रादि को भिक्षा के लिये खडा देख कर ) ग्राहार मुनि को दे और कहे कि, आहार मैंने तुम सबको जो यहाँ खढे हो, दिया है । तुम सब मिल कर इसे आपस में बांट लो । इस पर में सोचे कि, 'यह सब श्राहार वह मुनि यदि मन तो मुझ अकेले के लिये ही
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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