SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मित्रा [ ७ किसी गाव मे वृद्धावस्था के कारण स्थिरवास करने वाले ( समाणा ) या मास- मास रहने वाले ( वसमाणा) भिक्षुक, गांव-गांव फिरने वाले भिक्षुक को ऐसा कहे कि, यह गांव बहुत छोटा है अथवा बड़ा होने पर भी सूतक आदि के कारण अनेक घर भिक्षा के लिये बन्द है, इस लिये तुम दूसरे गाव जायो । तब भिक्षु उस गाव में भित्रा के लिये न जा कर दूसरे गाव चला जावे । [ २३ ] गृहस्थ के घर भिक्षा के लिये जाने पर ऐसा जान पडे कि यहा मांस-मछली आदि का कोई भोज हो रहा है और उसके लिये वस्तुएँ ली जा रही है मार्ग में अनेक जीवजन्तु, बीज और पानी पड़ा हुआ है और वहा श्रमण, ब्राह्मण यादि याचको की भीड़ लगी हुई है या होने वाली है और इस कारण वहां उसका जाना थाना वाचन और मनन निर्विघ्नरूप से नहीं हो सकता तो वह वहां भिक्षा के लिये न जावे । [ २२ ] भोज भिक्षु यह जान कर कि श्रमुक स्थान पर भोज (मंखडि) है, दो कोस से बाहर उसकी आशा रखकर भिक्षा के लिये न जाये परन्तु पूर्व दिशा से भोज हो तो पश्चिम से चला जावे, पश्चिम से हो तो पूर्व में चला जाये। इसी प्रकार उत्तर और दक्षिण दिशा के लिये भी करे । संक्षेप में, गांव, नगर या किसी भी स्थान में भोज हो तो वहां न जावे । इसका कारण यह कि भोज में उसको विविध दोप युक्त भोजन ही मिलेगा, अलग अलग घरसे थोड़ा थोड़ा इकट्ठा किया हुआ भोजन नहीं । और वह गृहस्थ भिन्नु के कारण छोटे दरवाजे वाले स्थान को बड़े दरवाजे वाला करेगा या बड़े दरवाजे वाले
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy