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________________ ५२] साचारांग सूत्र - - - - - कोई भिक्षु एक पात्र और तीन वनधारी हो या एक पात्र और दो वस्त्रधारी हो या एक पात्र और एक बावारी हो तो उसे यह न चाहिये कि वह एक वन और मांगे । हेमन्तऋतु के बीतने पर ग्रीष्म के प्रारम्भ में अपने जीर्ण बन्यो को त्याग कर ऊपर का और एक नीचे का बन्ध रखे या एक ही चम्म रो या वस्त्र ही न रख, भिक्षु को जैसे वसा लेने योग्य हो, बसे ही पहले, वह उनको न धोये और न धोये हुए या रंगे हा वस्त्र ही पहने। गाव बहार जाते समय कोई उसे लूटने की इन्छा करे तो वह अपने चम्नो को छिपाचे नहीं और न ऐसे वा ही कर पहने । [-११-२१२] ऐसा करने वाला भिक्षु उपाधि से मुक्त हो जाना है और उसका तप बटता है । यह वस्त्र धारी का प्राचार है । भगवान द्वारा वताए हुए इस मार्ग को बरावर समझ कर वह समभाव से रहे । [२१३-२१४] जो भिक्षु बिना वस्त्र के रहता हो, उसको ऐसा जान पडे कि मैं तृण-स्पर्श, ठंड, गरमी, डास-मच्छर के उपद्रव तथा दूसरे संक्टों को सहन कर सकता हूँ, परन्तु अपनी लज्जा ढाके बिना नहीं रह सकता तो वह एक कटिबन्ध स्वीकार कर ले । बिना वस्त्र के ठंड गरमी आदि अनेक दुःख सहने वाला वह भिक्षु उपाधि से मुक्त हो जाता है और उसका तप बढ़ता हे । [ २२३-२०४] यदि भिक्षु कामवासना के वशीभूत हो जाय और उसको वह सहन न कर सकता हो तो वह वसुमान और समझदार भिनु स्वयं अकार्य मे प्रवृत्ति न करके आत्मघात कर ले । ऐसे संयोगो में उसके लिये ऐसा करना ही श्रेय है, यही मरण का योग्य अवसर है, यही उसके संसार को नष्ट करने वाली वस्तु है, यही उसके लिये धर्माचार
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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