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________________ चौथा अध्ययन -(0) ܕܕ सम्यक्त्व 25 ( 2 ) जो अरिहंत पहिले हो गये है, वर्तमान में हैं और भविष्य में होगे, उन सबने ऐसा कहा है कि किसी भी जीव की हिंसा नहीं करना चाहिये, उस पर सख्ती नहीं करना चाहिये, उसे गुलाम या नौकर बनाकर उस पर बलात्कार नहीं करना चाहिये या उसे परिताप देना अथवा मारना नहीं चाहिये । यह धर्म शुद्ध है, नित्य है, शाश्वत है और लोक के स्वरूप को समझ कर ज्ञानी पुरुषोने गृहस्थ और त्यागी सबके लिये कहा है । यही सत्य है, और जिन प्रवचन से इसी प्रकार कहा है । [ १२६ ] परन्तु विभिन्न वादों के प्रवर्तक कितने ही श्रमण-ब्राह्मण ऐसा कहते हैं कि, " हमारे देखने, जानने सुनने और मानने के अनुसार और सत्र दिशा को खोजने के बाद हम कहते है कि सत्र जीवो की हिसा करने और जबरदस्ती से उनसे काम लेने आदि में कोई दो नहीं है । परन्तु ग्रार्यपुरुष कहते है कि उनका ऐसा कहना नार्थ वचन है जो ठीक नहीं है । सब प्राणियो की हिंसा नहीं करना चाहिये, उनको परिताप नहीं देना चाहिये, नहीं मारना चाहिये, उनकी गुलाम या नौकर बना कर उन पर बलात्कार नहीं करना चाहिये ।' यही आर्यवचन है।
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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