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________________ ++^ www AMAN सुख और दुःख हे वीर ! तू ऐसा बनेगा तो सब दुखो से मुक्त हो सकेगा । [ 90%, 905] [ २५ श्रात्मा संयम को उत्तम मानकर ज्ञानी कभी प्रमाद न करे । की रक्षा करने वाला वीर पुरुष संयम के अनुकूल मिताहार के द्वारा शरीर को निभावे और लोक में सदा परदर्शी, एकान्तवासी, उपशांत समभावी, सहृदय और सावधान होकर काल की राह देखता हुया विचरे । [ ११६ १११] एक-दूसरे की शर्म रखार या भय के कारण पापकर्म न करने चाला क्या मुनि है? सच्चा मुनि तो समता को बराबर समझ कर अपनी श्रात्मा को निर्मल करने वाला होता है । [ ११ ] क्रोध मान, माया और लोभ को छोडकर ही संयमी प्रवृत्ति करे | ऐसा हिंसा को त्याग कर संसार का अन्त कर चुकनेवाले दृष्टा कहते हैं । जो एक को जानता है, वही सबको जानता है, और जो सबको जानता है, वही एक को जानता है । जो एक को मुकाता है, वही सबको झुकाता हैं, और जो सबको झुकाता है, वही एक को काता है। इसका मतलब यह है कि जो क्रोध आदि चार कपायों में से एक का नाश करता है, वही बाकी के तीनो का नाश करता है, और जो बाकी के तीनोका नाश करता है, वही एक का नाश करता है । [ १२१, १२४ ] जो क्रोधदर्शी है, वही मानदर्शी है, जो मानदर्शी है वही मायादर्शी है, जो, मायादर्शी है, वही लोभदर्शी है; जो लोभदर्शी है, वही रागदर्शी है; जो रागदर्शी है, वही पदर्शी है, जो द्वैपदर्शी है, वही मोहदर्शी है; जो मोहदर्शी है, वही गर्भदर्श है, जो गर्भदर्शी है, वही जन्मदर्शी है,
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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