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आमुख
श्री हंसराज जिनागम विद्या प्रचारक फंड ग्रंथमाला का यह चतुर्थ पुप्प जनता की सेवामें प्रस्तुत है । तीसरे पुष्प के आमुख में मूचित किये अनुसार यह पुस्तक भी 'श्री आचारांग मुत्र' का छायानुवाद है । मूल ग्रंथ के विपयो का स्वतंत्र शैलीसे इसमें सम्पादन किया गया है इतना ही नहीं मूल ग्रंथ की सम्पूर्ण छाया प्रामाणिक स्वरूप में रखने का पूर्ण प्रयत्न किया गया है। इस प्रकार करनेसे स्वाभाविक रूपसे ग्रंथ में संक्षेप हो गया है इसके साथ ही विषयोका निरूपण क्रमबद्ध हो गया है और पिष्टपेपण भी नहीं हुआ है । तत्वज्ञान जैसे गहन विषय को भी सर्व साधारण सरलतासे समझ सके इस लिये भाषा सरल रक्खी गई है। ऐसे भाववाही अनुवादो से ही अाम जनतामें धार्मिक साहित्यका प्रचार हो सकता है ।
___ यह ग्रन्थ मूल गुजराती पुस्तकका अनुवाद है । गुजराती भापाके सम्पादक श्री गोपालदास जीवाभाई पटेल जैन तत्वज्ञान के अच्छे विद्वान है।
श्री पूंजाभाई जैन ग्रन्थमाला की कार्यवाहक समितिने इस ग्रन्थ का अनुवाद करने की अनुमति दी, उसके लिये उनका आभार मानता हूं।
सेवक
बम्बई
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चिमनलाल चकुभाई शाह
सहमंत्री श्री. अ. भा. श्वे. स्था. जैन कॉन्फरन्स
ता. २५-६-१९३८)