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________________ “सुख और दुख [२३ की हिसा न करे, ऐसा मैं कहता हूँ । श्रद्धावान् और जिनाना को मानने वाला बुद्धिमान् लोक का स्वरूप बरावर समझ कर किसी भी तरह का भय न हो, इस प्रकार प्रवृत्ति करे । हिंसा मे कमी करे पर अहिसा में नहीं। [१०६, १११, ११४, १२४, ] जो मनुष्य शब्द आदि कामभोगो की हिसा को जानने मे कुशल है, वे ही अहिसा को समझने में कुशल हैं । और जो अहिसा को समझने में कुशल है, वे ही शब्द आदि कामभोगो की हिंसा को जानने में कुशल हैं । जिसने इन शब्द रूप, गन्ध, रस और स्पर्श का स्वरूप बराबर समझ लिया है, वही आत्मवान, ज्ञानवान, वेदवान धर्मवान और ब्रह्मवान है । वह इस लोक के स्वरूप को बरावर समझता है। वही सच्चा मुनि है । वह मनुष्य संसार के चक्र और उस के कारण रूप मायाके संग को बरावर जानता है। [१०६, १०६-७] जगत् के किंकर्तव्यमूढ और दु खसागर में डूबे हुए प्राणियो को देख कर अप्रमत्त मनुष्य सब कुछ त्याग कर संयम धर्म स्वीकार करे और उसके पालन में प्रयत्नशील बने । जिनको संसार के सब पदार्थ प्राप्त थे, उन्होने भी उसका त्याग करके संयम धर्म स्वीकार क्यिा है। इस लिये ज्ञानी मनुष्य इस सबको नि सार समझ कर संयम के सिवाय दूसरी किसी वस्तु का सेवन न करे। [ १०६,११४ ] हे पुरुष! तू ही तेरा मित्र है। बाहर मित्र को क्यो ढूंढता है ? तू अपनी प्रात्मा को निग्रह में रख । इस प्रकार तू दुख से मुक्त हो जावेगा। [ ११७, ११८]
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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