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याचारांग सूत्र
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दुखी होता है । इसलिये तृष्णा को त्याग दी । कामभोगो के स्वरूप और उनके विकट परिणाम को न समझने वाला कामी अन्त मे रोता और पछताता है । [ ८४-२२, ४, ५ ]
शांति के मूलरूप
भगवान् ने कहा
तू
विषय कपायादि में प्रति मूढ मनुष्य सच्ची धर्म को समझ ही नहीं सकता । इस लिये, वीर है कि महामोह में जरा भी प्रमाद न करो । हे धीर पुरुष श्राशा और स्वच्छन्दता का त्याग कर । इन दोनो के कारण ही तू भटकता रहता है। सच्ची शांति के स्वरूप औौर मरण (मृत्यु) का विचार करके तथा शरीर को नाशवान् समझ कर कुशल पुरुष क्यो कर प्रमाद करेगा ? [ ८४ ]
जो मनुष्य ध्रुव वस्तु की इच्छा रखते है, वे क्षणिक और दुखरूप भोगजीवन की इच्छा नहीं करते । जन्म और 'मरण का विचार करके बुद्धिमान् मनुष्य दृढ (ध्रुव) संयम में ही स्थिर रहे और एक बार संयम के लिये उत्सुक हो जाने पर तो कर एक मुर्हुत भी प्रमाद न करे क्योकि वाली है । [ ८०, ६५ ]
अवसर जान थाने ही
मृत्यु तो
ऐसा जो बारबार कहा गया है, वह संयम की वृद्धि के लिये ही हे । [ ४ ]
कुशल मनुष्य काम को निर्मूल करके, सब सांसारिक सम्बन्धो और प्रवृत्तियो से मुक्त होकर प्रत्रजित होते हैं । वे काम भोगो के स्वरूप को जानते है और देखते हैं । वे सब कुछ बराबर समझ कर किसी प्रकार की भी ग्राकांक्षा नहीं रखते । [ ७५ ]
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