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श्राचारांग सूत्र
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जो मनुष्य अपना दुःख जानता है, वहीं बाहर के का दु.ग्त्र जानता है; और जो बाहर के का दुख जानता है, वही अपना भी दुख जानता है। शांति को प्राप्त हुए सयमी दूसरे की हिंया करके जीना नहीं चाहते।
से बेमि-ने' व सयं लोग अभाइक्खेजा, नव अत्ताणं अमाइक्खेज्जा । जे लोगं अमाइक्खड़, से अत्ताणं अव्माइक्खइ. जे अचाणं अमाइक्खड़, से लोगं अन्माइक्खा । (१:२२)
मनुष्य दूसरो के सम्बन्ध मे अनावधान न रहे ।जो दूसरो के सम्बन्ध मे असावधान रहता है, वह अपने सम्बन्ध में भी असावधान रहता है; और जो अपने सम्बन्ध में असावधान रहता है, वह दूसरों के सम्बन्ध में भी असावधान रहता है ।
जे गुणे से आवट्टे जे आवटे से गुणे उड्ढं अहं तिरियं पाईणं पासमाणे रूबाई पासइ, सुणमाणे सद्दाई, सुणहः उड्ढे अहं तिरियं पाईणं मुच्छमाणे स्वेसु मुच्छइ सद्देसु यावि । एत्थ अगुच अणाणाए । एस लोए वियाहिए पुणो पुणो गुणासाए बंकसमायारे पमचे मारमावसे । (१:४०-४)
हिंसा के मूल होने के कारण कामभोग ही संसार में भटकाते हैं संसार में भटकना ही काम भोगो का दूसरा नाम है। चारो योर अनेक प्रकारके रूप देखकर और शब्द सुन कर मनुष्य उनसे यासक्त होता है । इसी का नाम संसार है । ऐसा मनुष्य महापुरुषो के वताए हुए मार्ग पर नहीं चल सकता, परन्तु बार बार कामभोगो में फस कर हिंसा श्रादि वक्रप्रवृत्तियो को करता हुया घर में ही मुर्छित रहता है।