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________________ - - arnwww भावनाएँ अडग होकर सहन करूंगा और उपसर्ग (विन) देने वाले के प्रति समभाव रखूगा। ऐमा नियम लेकर महावीर भगवान् एक मुहूर्त दिन बाकी था तब कुम्मार ग्राम में श्रा पहुंचे। __इसके बाद, भगवान् शरीर की ममता छोड़कर बिहार (एक स्थान पर स्थिर न रहकर विचरते रहना), निवास स्थान, उपकरण (साधन सामग्री), तप संयम, ब्रह्मचर्य, शांति, त्याग, संतोप, समिति, गुप्ति आदि में सर्वोत्तम पराक्रम करते हुए और निर्माण की भावना से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। वे उपकार-अपकार, सुग्व-दुःख, लोक-परलोक, जीवन-मृत्यु मानअपमान आदि में समभाव रखने, संसार समुद्र पार करने का निरन्तर प्रयत्न करने और कर्मरूपी शत्रु का समुच्छेद करने में तत्पर रहते थे। इस प्रकार विचरते हुए भगवान् को ढेव, मनुष्य या पशु-पक्षी श्रादि ने जो उपसर्ग दिये, उन सबको उन्होने अपने मनको निर्मल रखने हुए, बिना व्यथित हुए, अदीनभाव से सहन किये, और अपने मन, वचन और काया को पूरी तरह वश मे रखा । इस प्रकार बारह वर्ष बीतने पर, तेरहवें वर्ष मे, ग्रीष्म के दूसरे महिने में, चौथे पन मे वैशाख शुक्ला दशमी को, सुव्रत दिन को, विजय मुहूंत मे, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में, छाया पूर्व की और पुस्पाकार लम्बी होने पर, ज़ांभक गांव के बाहर, ऋजुवालिका नदी के उत्तर किनारे पर, श्यामाक नामक गृहस्थ के खेत में, वेयावत्त नामक चत्य के ईशान्य मे, शालिवृक्ष के पास, भगवान् गोदोहास न से ऊकडू बैठे ध्यान मग्न होकर धूप में तप रहे थे। उस समय उनको अहमभत्त ( छ बार अनशन का ) निर्जल उपवाम था और वे गुन्द्वभ्यान में थे । उस समय उनको निर्वाणरूप,
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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