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________________ वस्त्र vvv wvvvww vvvvvvvv..." - टेना हो तो अभी दे दो।' इस पर वह कहे कि, 'थोडी देर बाद ही तुम ग्रामोतो भी वह इसे स्वीकार न करे । यह सुनकर वह गृहस्थ घर मे किमी से कहे कि, 'हे भाई या बहिन, अमुक वस्त्र लामो, उस वस्त्र को हम भिक्षु को दें, और अपने लिये दूसरा लावेंगे ।' तो ऐसा वस्त्र सदोष जानकर भिक्षु न ले । अथवा वह गृहस्थ अपने घर के मनुष्य से ऐमा कहे कि, 'अमुक वस्त्र लायो, हम उसको सुगन्धी पढार्य या उकाले से घिस कर साफ़ करके या सुगन्धित करके भिक्षु को दें, या ठंडे अथवा गरम पानी से धोकर दें, या उसमें के कंद, शाक भाजी आदि निकाल कर दें; तो भिन्नु सुरन्त ही उसे कह दे कि, 'हे आयुग्मान् , तुम्हें देना ही हो तो ऐसा क्येि बिना ही दो।' इतने पर भी गृहस्थ उसे वैसा करके ही देने लगे तो वह उसे सढोप जानकर न ले। गृहस्थ भिक्षु को कोई वस्त्र देने लगे तो भिक्षु उसे कहे कि 'हे श्रायुप्मान् , मैं एक बार तुम्हारे वस्त्र को चारो तरफ से देख लू , बिना देखे भाले वस्त्र को लेने में अनेक दोष है। कारण यह कि इस वस्त्र में, साभव है, कोई कुंडल, हार श्रादि आभूपण या वीज, धान्य आदि कोई सचित्त वस्तु बंधी हो। इस लिये पहिले ही से देख कर वस्त्र ले । [१४६] जो वस्त्र जीवजन्तु से युक्त जान पडे, भिक्षु उसे न ले । यदि वस्त्र जीवजन्तु से रहित हो पर पूरा न हो, जीर्ण हो, थोड़े समय के लिये दिया हो, पहिनने योग्य न हो और किसी तरह चाहने योग्य न हो तो भी उसको न ले । परन्तु जो वस्त्र जीवजन्तु से रहित, पूरा, मजवृत, हमेशा के लिये दे दिया हुआ, पहिनने यो'य हो, उसे निर्दोष जानकर ले ले ।
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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