SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ VIN भाषा N V ww 110 ANNw JNI N ~ wwwwwwww wwww www AAMAAN [ १०३ भिक्षु उत्तम रूप देखकर उनको वैसा ही कहे । जैसे, तेजस्वी श्रादि । संक्षेप में, जिसके कहने पर सामने वाला मनुष्य नाराज न हो, ऐसी भाषा जान कर बोले । भिक्षु कोट, किला, घर आदिको देखकर ऐसा न कहे कि यह सुन्दर बनाया है या कल्याणकारी है । परन्तु जरूरत पड़ने पर ऐसा कहे कि, यह हिसापूर्वक बांधा गया है, दोपपूर्वक बांधा गया है, प्रयत्नपूर्वक बांधा गया है । अथवा दर्शनीय को दर्शनीय और बेडोल को बेडोल कहे । [ १३६ ] इसी प्रकार तैयार किये हुए आहार -पानी के सम्बन्ध में समझे । [ १३७ ] भिक्षु किसी जवान और पुट प्राणी- पशु-पक्षी को देखकर ऐसा न कहे कि, यह हृष्टपुष्ट, चरवी युक्त, गोलमटोल, काटने योग्य या पकाने योग्य है परन्तु जरूरत पड़ने पर ऐसा कहे कि इसका शरीर भरा हुआ है, इसका शरीर मजबूत है, यह मांस से भरा हुआ है अथवा यह पूर्ण अंग वाला है 1 भिक्षु गाय, बैल आदि को देखकर ऐसा न कहे कि यह दोहने योग्य है, फिराने योग्य है, या गाडी में जोतने योग्य है पर ऐसा कहे कि यह गाय दूध देने वाली है, जवान है और बैल बड़ा या छोटा है । भिक्षु बाग, पर्वत या वन मे बड़े पेड़ श्रादि देखकर ऐसा न कहे कि, यह महल बनाने के काम के हैं, दरवाजे बनाने के काम के हैं या घर, अर्गला, हल, गाड़ी आदि बनाने के काम के हैं। पर ऐसा कहे कि, योग्य जाति के हैं, ऊंचे है, मोटे हैं, वेडोल या दर्शनीय है । अनेक शाखा वाले है,
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy