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________________ द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका फिर इन्हे गुण क्यो बताया उत्तर-- ये आठोकिसी समयसे ही प्रकट हुये अतः पर्याय है । यहाँ गुण शब्दका अर्थ है विशेषता । सिद्धोकी विशेषता इन ८ विकासो द्वारा बताई है। प्रश्न ३५.- सिद्धभगवान चरमशरीरसे कुछ ऊन क्यो होते हैं ? उत्तर-इसके दो कारण है-(१) शरीरके अग्रनख, केश और ऊपरी सूक्ष्म त्वचामे आत्मप्रदेश नहीं होते है, सो शरीरसे मुक्त होनेपर पूर्व शरीरसे, जिसमे नख, केश, त्वचा भी थे. कुछ कम अवगाहना है । (२) सयोगकेवलीफे अन्तिम समयमे शरीर व अङ्गोपाङ्ग नामकर्मके उदयकी व्युच्छित्ति हो जाती है । इस कारण अयोगकेवलीके प्रथम समयमे ही नासिकाछिद्र आदि समाप्त हो जाते है। इसलिये किञ्चित् ऊनपना हो जाता है । यही ऊनपना सिद्धभगवानके प्रदेशावगाहनामे है। प्रश्न ३६- शरीरका आवरण समाप्त होनेपर प्रात्मप्रदेश फैलकर लोकप्रमाण क्यो नही हो जाते ? उत्तर-- आत्मप्रदेशोका विस्तार आत्माका स्वभाव नही है, विस्तार शरीर नामकर्मके प्राधीन है । शरीर नामकर्मके अभावसे विस्तारका भी अभाव है। प्रश्न ३७- जैसे दोपकके प्रावरणका प्रभाव होनेसे दीपकका प्रकाश एकदम फैल जाता है, क्या इसी तरह प्रात्मप्रदेश भी फैल सकते है ? उत्तर-- दीपक तो पहिले भी निरावरण हो सकता है, पीछे आवरण आ सकता है, अतः दोपका आवरण न होनेपर दीप प्रकाश फैल सकता है, किन्तु आत्मा पहिले शरीररहित हो पश्चात् शरीरबद्ध हो, ऐसा नही है, अतः शरीरका आवरण हटनेपर भी आत्मा शरीर, प्रमाण रहता है। प्रश्न ३८- जो दीपक पहिलेसे प्रावरणके भीतर जला हो उसे फिर बाहर निकाल दिया जाय तो जैसे वह फैल जाता इस तरह आत्मा क्यो नही फैलता ? । ___-उत्तर- दीपक तो निरावरण भी रह सकता यह आत्मा तो अनादिसे शरीरमे ही रहा, अतः दृष्टान्त विषम है । और दूसरी बात यह है कि लोकमे रूढि ऐसी है जो कहते है कि दीपकका प्रकाश फैल गया। वास्तवमे दीप-प्रकाश दीप-शिखाके, बाहर नही है । । प्रश्न ३६- तो वह प्रकाश किसका है जो सारे कमरेमे फैला है ? उत्तर-जिस पदार्थपर प्रकाश है वह उस ही पदार्थका प्रकाशपरिणमन है । हाँ वह (प्रकाशपरिणमन दीपकको निमित्त पाकर हुआ है। प्रश्न ४०- तब दीपकके सामनेके बहुत दूरके पदार्थ क्यो नही प्रकाशपरिणमनयो प्राप्त करते?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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