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संक्षिप्त विपय परिचय प्रथम अध्याय-गाथा २७, प्रश्नोत्तर ८३०, वर्णन -उद्देश्यसाधक मङ्गलाचरण, जोद स्वरूपके ६ अधिकार, जीवका निरुक्तत्यर्थ, जीवकी उपयोगिता, उपयोगके भेद प्रभेदोका विशद विवरण, जीवका लक्षण, अमूर्तित्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व, स्वदेहपरिमाणत्व, ससारित्वके भेदप्रभेद, चौदह जीवसमास, वदीफिके भेद सिद्धत्व और ऊर्ध्वगमनत्व, अजीवद्रव्योके भेद पुद्गलकी पर्याय, धर्म, अधर्म, आकाश और उसके भेद, कालद्रव्यका स्वरूप, कालद्रव्यकी सख्या अस्तिकाय की सख्या, अस्तिकापका स्वरूप, द्रव्योके प्रदेशोका परिमाण,. अणुके अस्तिकायपना, प्रदेशके स्वरूपका वर्णन है।
द्वितीय अध्याय-गाथा ११, प्रश्नोत्तर ८३४, वर्णन-जव तत्त्वोके नाम, प्रास्रवका स्वरूप, भावास्रवोका विशेष विवरण, द्रव्यास्रवोका विशेष विवरण, बन्धतत्त्वका स्वरूप, द्रव्य बधके भेद व कारण, सवर तत्त्वका स्वरूप, भावसंवरका विस्तृत विवरण, निर्जरातत्त्वका स्वरूप, मोक्षतत्त्वका स्वरूप, पुण्य व पाप तत्त्वका स्वरूप ।
तृतीय अध्याय-गाथा २०, प्रश्नोत्तर ४७४, वर्णन-निश्चयरत्नत्रय, इसे एक प्रात्मा का कहनेका कारण, सम्यग्दर्शनके गुण व दोष, सम्यग्ज्ञानका स्वरूप, दर्शनका स्वरूप, दर्शन व ज्ञानकी सहभाविता क्रमभाविता, सम्यक्चारित्र, अभेद सम्यक्चारित्र, ध्यानका स्वरूप, ध्यान की सिद्धिका उपाय, पदस्थध्यान, अरहतपरमेष्ठीका स्वरूप, सिद्धपरमेष्ठीका स्वरूप, प्राचार्यपुरभेष्ठीका स्वरूप, उपाध्यायपरमेष्ठोका स्वरूप, साधुपरमेष्ठीका स्वरूप, निश्चयध्यान व परमध्यान का स्वरूप व उपाय, अतिम उपदेश, अतिम कथन ।
परमात्म-ग्रारती
ॐ जय जय अविकारी। जय जय अविकारी, ॐ जय जय अविकारो। हितकारी भयहारी, शाश्वत स्वविहारी ।टेक।। ॐ
काम क्रोध मद लोभ न माया, समरम सुखगरी।
ध्यान तुम्हारा पावन, मकल क्लेगहारी ॥१॥ ॐ हे स्वभावमय जिन तुमि चीना, भव सन्तति टारी। तुव भूलत भव भटकत, सहत-विपति भारी ॥२॥ ॐ
परसम्वध बध दुख कारण, करत अहित भारी ।
परमव्हाका दर्शन, चहु गति दुखहारी ॥३॥ ॐ ज्ञानमूर्ति हे सत्य सनातन, मुनिमन सचारो। निर्विकल्प शिवनायक, शुचिगुण भण्डारी ॥४॥ ॐ
बसो बसो हे सहज ज्ञानघन, सहज गांतिचारी। टले टलें सब पातक, परवल बलधारी ॥५॥