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द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न १८-इस कर्तृत्वके प्रकरणसे हमे क्या शिक्षा लेनी चाहिये ?
उत्तर-- निरञ्जन, निष्क्रिय निज शुद्ध चैतन्यकी भावना अवलम्बनसे तो शुद्ध भावो का कर्ता बन जाता है. जिसका फल अनन्त सुख है और इस निज शुद्ध चैतन्यकी भावनासे रहित होकर रागादि विभावोका कर्ता होता है, जिसका फल घोर दुख है । सर्व दु खोसे मुक्त होनेके लिये शुद्ध चैतन्यस्वभावका अवलम्बन लेना चाहिए।
___इस प्रकार "जीव कर्ता है" इस अर्थके व्याख्यानका अधिकार समाप्त करके "जीव भोक्ता है" इसका वर्णन करते है
ववहारा मुहदुक्ख पुग्गलकम्मफ्फल पर्भुजेदि ।
आदा णिच्छयणयदो चेदणभाव खु पादस्स ।।६।। अन्वय- ादा ववहारा सुहदुक्ख पुग्गलकम्मफ्फल प जेदि, खु णिच्छयणयदो आदस्स चेदणभाव प जेदि।
___ अर्थ- आत्मा व्यवहारन पसे सुख दुःखरूप पुद्गलकर्मके फलको भोगता है और निश्चयनयसे अपने-अपने चेतनभावको भोगता है । प्रश्न १-व्यवहारके कितने भेद है आरोपित
निमित की मौजूद ___ उत्तर- व्यवहारके ४ भेद है- (१) उपचरित असदुभतव्यवहार, (२) अनुपर्चरित निमा अपभूतव्यवहार, (३) उपचरित अशुद्ध सद्भूतव्यवहार, (४) अनुपचरित शुद्ध सद्भूतव्यव. हार । इनमे से उपचरित अशुद्ध सद्भूतव्यवहारका नाम तो अशुद्धनिश्चयनय है और अनुपचरित शुद्ध सद्भूतव्यवहारका नाम शुद्ध निश्चयनय है ।
प्रश्न २- उपचरित असद्भूतव्यवहारनयमे जीव किसको भोगता है ?
उत्तर-उपचरित असद्भूतव्यवहारनयसे जीव इन्द्रियोके विषयभूत पदार्थोसे उत्पन्न सुख दुःखको भोगता है अथवा विषयोको भोगता है । यहाँ "पदार्थोंसे उत्पन्न" इस अर्थकी मुख्यता है । विषयभूत पदार्थ बाह्य है और एकक्षेत्रावगाही भी नही, अत. इनका भोक्तृत्व उपचरित है पदार्थ अथवा विषयज सुख आत्मस्वभावसे विपरीत है, अतः असद्भुत है और पर्याय है, इमलिये व्यवहार है।
प्रश्न ३-अनुपचरित असद्भूतव्यवहारन से जीव किसका भोक्ता है ?
उत्तर-अनुपचरित असद्भूतव्यवहारनयसे जीव मुख दुखरूप पुद्गल कर्मोके फल को भोगता है। पुद्गल कर्म एकक्षेत्रावगाही है, अतः उनके फलका भोक्तृत्व अनुपचरित है। कर्म और कर्मफल प्रात्मस्वभावसे विपरीत है, अन असदुद्भूत है, पर्याय है, अतः व्यवहार है।
प्रश्न ४- निश्चयनयके कितने भेद है ? उत्तर-निश्चयनयके ३ भेद हैं- (१) अशुद्धनिश्चयनय, (6) शुद्धनिश्चयनय,