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गाथा ५३
___ उत्तर- उपाध्याय परमेष्ठी निश्चयधर्म व व्यवहारधर्म दोनो प्रकारके धर्मोंका उपदेश करते है।
प्रश्न ६- निश्चयधर्म किसे कहते है ? Sniउत्तर-- वस्तुके स्वभावको अथवा आत्माके स्वभावको निश्चयधर्म कहते है तथा इस निश्चयधर्मकी दृष्टिके फलमे होने वाले मोहक्षोभरहित निर्मल परिणामको भी निश्चयधर्म कहते है।
प्रश्न ७- व्यवहारधर्म किसे कहते है ? Emउत्तर- निश्चयधर्मके परम्परया साधनभूत एकदेश शुद्धोपयोगरूप या निश्चयधर्मके 'लक्ष्य रहते हुए किये गये शुभोपयोगको व्यवहारधर्म कहते है अथवा निश्चयधर्मके आविर्भाव को व्यवहारधर्म कहते है।
प्रश्न ८ - इन धर्मोका उपदेश किस पद्धतिसे दिया जाता है ?
"उत्तर-- निज शुद्धात्मद्रव्य उपादेय है, परद्रव्य हेय है, निज शुद्धात्मसवेदन भाव उपादेय है, परभाव हेय है, परमात्मभक्ति, सयम, ध्यान उपादेय है, पापभाव हेय है इत्यादि हेयोपादेयकी बुद्धि विशद करने वालो पद्धतिसे धर्मोपदेश दिया जाता है।
प्रश्न - यतिवरवृषभ शब्दका क्या अर्थ है ? धर्मको पारण in
उत्तर-विषय कषायोके विजय द्वारा जो निज शुद्धात्मतत्त्वकी सिद्धिमे यत्न करते हैं उन्हे यति कहते है और जो यतियोमे वर है, श्रेष्ठ है उन्हे यतिवर कहते है तथा यतिवरोमे वृषभ अर्थात् प्रवानको यतिवरवृपभ कहते हैं ।
प्रश्न १०-उपाध्याय शब्दका क्या अर्थ है ?
उत्तर-उप समीपे, यस्य समीपे अधीते शिष्यवर्गः पठति स उपाध्याय , जिसके समीप मे आत्मकल्याणार्थी शिष्यवर्ग अध्ययन करते है उसे उपाध्याय कहते हैं । ।
प्रश्न ११–उपाध्याय परमेष्ठीके ध्यानसे क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर- उपाध्याय परमेष्ठोके मूल गुण २५ है, जिनके नाम ११, अग १४ पूर्वरूप है, क्योकि उपाध्याय परमेष्ठी इनके ज्ञाता होते है । सो उपाध्याय परमेष्ठी ज्ञानके प्रतीक है, इनके ध्यानसे निश्चयस्वाध्यायवे कारणभूत प्रागमज्ञानप्राप्तिकी तथा निज शुद्धात्मतत्त्वके अभ्यासरूप निश्चयस्वाध्यायकी प्रेरणा मिलती है।
प्रश्न १२-उपाध्याय परमेष्ठीका क्या केवल पदस्थ ध्यानमे ध्यान होता है ?
उत्तर- उपाध्याय परमेष्ठीका पिण्डस्थ ध्यानमे भी ध्यान होता है। यह ध्यान इस पिण्डस्थ ध्यानका कारणभूत है ।
इस प्रकार पदस्थ ध्यानमे ध्येयभूत उपाध्याय परमेष्ठीका स्वरूप कहकर पदस्थानमें