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________________ २७० द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर- सम्यग्ज्ञानमे आचरण याने परिणमन करनेको ज्ञानाचगर कहते है। प्रश्न ४- सम्यग्ज्ञान किसे कहते है ? उत्तर-- भेदविज्ञानके बलसे परमपारिणामिक भावरूप याने अत्यन्त निरपेक्ष सहज चैतन्यस्वभावमय शुद्ध आत्माको मिथ्यात्व, राग, द्वेष आदि परभावोसे पृथक् जानना सम्यग्ज्ञान प्रश्न ५-चारित्राचार किसे कहते है ? उत्तर-सम्यकचारित्रमे आचरण याने परिणमन करनेको चारित्राचार कहते हैं । प्रश्न ६- सम्यक्चारित्र किसे कहते है ? उत्तर- निर्दोष, निरुपाधि, सहज आनन्दके अनुभवके बलसे चित्तके निश्चेष्ट हो जानेको सम्यक्चारित्र कहते है। प्रश्न ७-तपाचार किसे कहते है ? उत्तर- सम्यक्तपमे आचरण याने परिणमन करनेको तपाचार कहते है ? प्रश्न ८-सम्यक्तप किसे कहते है ? उत्तर-समस्त परद्रव्य व परभावोको इच्छाका अत्यन्त निरोध करके निज शुद्ध आत्मतत्त्वमे तपनेको सम्यक्तप कहते है। प्रश्न :-वीर्याचार किसे कहते है ? उत्तर-सम्यग्वीर्यमे आचरण याने परिणमन करनेको वीर्याचार कहते है । प्रश्न १०-सम्यग्वोयं किसे कहते है ? उत्तर- सम्यग्दर्शनाचार, सम्यग्ज्ञानाचार, सम्यकुचारित्राचार और सम्यक्तपाचारइन चारो आचारोके धारण और रक्षणके लिये आत्मशक्तिके प्रकट होनेको सम्यग्वीर्य कहते है। प्रश्न ११-प्राचार्यदेव इन पांच प्रकारके प्राचारोमे अपनेको कैसे लगाता है.? उत्तर-आचार्य परमेष्ठी स्वशुद्धात्मभावनाके बलसे अपनेको पांच प्राचारोमे लगाता है, कदाचित् कुछ प्रमाद हो तो व्यवहारदर्शनाचार, व्यवहारज्ञानाचार, व्यवहारचारित्राचार, व्यवहारतपाचार, व्यवहारवीर्याचारमे बर्त कर पुन पूर्ण सावधान होकर मिथ्याचारमे मोर लग जाता है। प्रश्न १२-उक्त पाँच प्राचारोमे प्राचार्य शिष्यको कैसे लगाता है ? उत्तर-आचार्यके प्राचारोकी दृढता देखकर शिष्य प्राचारोमे दृढ हो जाता है। इसके अतिरिक्त आचार्य शिष्योको उपदेश देकर, दीक्षा, प्रायश्चित प्रादि देकर शिष्योको प्राचारोमे लगनेके पात्र बना देते है ।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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