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________________ नाश २५४ द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न १५- विपयसरक्षणानन्द रौद्रध्यान किसे कहते है ? - उत्तर-पञ्चइन्द्रियोके विषयसाधनोके सरक्षणमे, परिग्रहके उपार्जन व रक्षणमे आनन्द माननेको विषयस रक्षणानन्द रौद्रध्यान कहते है। प्रश्न १६-धर्म्यध्यान ४ कौन-कौन है ? उत्तर- आज्ञा विचय, अपायविचय, विपाकविचय, सस्थानविचयमे चार धर्म्यध्यान है। प्रश्न १७-आज्ञाविचय धर्मध्यान क्सेि कहते है ? उत्तर- जिनेन्द्रदेव अन्यथावादि नहीं होते, इस प्रतीतिके कारण जिनेन्द्रदेवकी आज्ञाके अनुसार सूक्ष्म तत्त्वोका निश्चय करना प्राज्ञाविचय धर्म्यध्यान है । - प्रश्न १८-अपायविचय धर्म्यध्यान किसे कहते है ? उत्तर-भेदरत्नत्रय व अभेदरत्नत्रयकी भावनाके द्वारा हमारे व अन्य भव्यात्मावोके रागादि भावका कब विनाश होगा आदि प्रकारसे कर्मोके अपायका और मुक्तिके उपायका चिन्तवन करना सो अपायविचय धर्म्यध्यान है। प्रश्न १६-विपाकविचय धर्म्यध्यान किसे कहते है ? उत्तर- यद्यपि यह आत्मा स्वभावसे अविकार सहज चैतन्यस्वभावमय है तथापि पुण्यकर्मके उदयसे सुखका व पापकर्मके उदयसे दुखका अनुभव करता है इत्यादि प्रकारसे कर्मविपाकका चिन्तवन करना सो विपाकविचय धर्म्यध्यान है । प्रश्न २०- सस्थानविचय धर्म्यध्यान किसे कहते है ? उत्तर- लोककी रचनाओका व वहाँ सर्वत्र प्रदेशोमे जन्म-मरण करने आदिका चितवन करनेको सस्थानविचय धर्म्यध्यान कहते है। प्रश्न २१-शुक्लध्यान चार कौन-कौन है ? उत्तर-पृथक्त्ववीतर्कविचार, एकत्ववितकप्रबोचार, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति, व्युपरतक्रियानिवृत्ति, ये चार शुक्लध्यान है। प्रश्न २२- पृथक्त्ववीतर्कविचार शुक्लध्यान किसे कहते है ? More- उत्तर-- पृथक्त्वका अर्थ है द्रव्य, गुण और पर्यायवी भिन्नता, वितर्कका अर्थ है निज शुद्ध आत्माको अनुभवरूप भावश्रुत अथवा भावतका वाचक अन्तर्जल्परूप वचन, वीचारका अर्थ है। किसी अर्थसे अर्थान्तरमे, किसो वचनसे वचनान्तरमे, किसी योगसे योगान्तरमे परिणमना)। उक्त प्रकारसे बिना चाहे अपने आप परिवर्तनसहित परिणमन होता रहे, ऐसे विराग शुक्लध्यानको पृथक्त्ववीतर्कविचार शुक्लध्यान कहते है। प्रश्न २३- एकत्ववितके अवीचार शुक्लध्यान किसे कहते है ? निज शुद्ध द्रव्यमे, निजके निरुपाधिगुणमे व निराकुल स्वसवेदन पर्यायमे जिस एक फल वार
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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