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________________ २४८, द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न १८-- क्या सयमासयमके सब स्थानोमे पञ्च स्थावरके घातत्याग नही हो पाता? उत्तर-- सय्मासयमके ऊपरी स्थानोमे यद्यपि स्थावरका घात रुक जाता है तथापि सर्वथा त्यागका नियम महाव्रतमे होता है। प्रश्न १६-- सयमासयमके स्थान कितने है ? उत्तर- सयमासयमके असंख्यात स्थान है, किन्तु यदि उन्हे सक्षेपमे श्रोणिबद्ध क्यिा जावे तो उनकी श्रेणी ११ की जा सकती है । इन श्रेणियोको प्रतिमा (प्रतिज्ञा) भी कहते है । प्रश्न २०-- ग्यारह प्रतिमायें कौन-कौनसी है ? उत्तर-श्रावकको ११ प्रतिमाये इस प्रकार है-(१) दर्शन प्रतिमा, (२) व्रत प्रतिमा, (३) सामायिक प्रतिमा, (४) प्ररोपध प्रतिमा, (५) सचित्तत्याग प्रतिमा, (६) रात्रिभुक्तित्याग प्रतिमा या दिवामैथुनत्याग प्रतिमा, (७) ब्रह्मचर्य प्रतिमा, (८) प्रारम्भत्याग प्रतिमा, (९) परिग्रहत्यागप्रतिमा, (१०) अनुमतित्याग प्रतिमा, (११) उछ्रिष्टाहारत्याग प्रतिमा । प्रश्न २१.- दर्शन प्रतिमग कहते है ? उत्तर-- जहाँ सम्यग्दर्शन प्रकट हो गया है एव ससार शरीर व भोगोसे वैराग्य हो चुका है और इसी कारण उन समस्त अभक्ष्य पदार्थोका जिनमे सघात होता है, त्याग भी हो चुका है उसे दर्शनप्रतिमा कहते है । इस प्रतिमाका धारक श्रावक अनन्त स्थावर घात वाले अभक्ष्य, जैसे आलू, मूली आदि नही खाता है व मर्यादित भोजन सामग्रीका उपयोग करता है। यह दार्शनिक श्रावक परमेष्ठिभक्तिमे निज प्रात्मतत्त्वकी दृष्टिमे रहकर आगे चारित्रमे बढनेका उत्साह रखता है। प्रश्न २२- व्रत प्रतिमा किसे कहते है ? उत्तर- अहिसाणुव्रत, सत्यागुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत, परिग्रहपरमाणुव्रत, इन पांच अणुवतोका निरतिचार पालन करना एव दिग्वत, देशव्रत, अनर्थदण्डव्रत, सामायिक प्रोषधोपवाम, भोगोपयोगपरिमाणवत व अतिथिसविभागवत-इन ७ शीलोका पालन करना तो व्रतप्रतिमा है । प्रश्न २३- सामायिक प्रतिमा विसे कहते है ? उत्तर-प्रात , मध्याह्न, अपराह्न, इन तीन कालोमे विधिपूर्वक निरतिचार कमसे कम २ घडी तक सामायिक करनेको सामायिक प्रतिमा कहते है। प्रश्न २४-प्रोपध प्रतिमा विसे कहते है ? उत्तर-प्रत्येक अष्टमी व चतुर्दशीको उत्तम, मध्यम व जघन्य रूपसे प्रोपधोपनत करनेको प्रोषधप्रतिमा कहते है। प्रश्न २५-प्रोपघोपवासका उत्तम रूप क्या है ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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