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________________ द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका कहते है। प्रश्न २८८- अदर्शनपरीपहजय किसे कहते है ? उत्तर- महोपवासादि अनेक तपस्यावोके करने पर भी अब तक कोई अतिशय या प्रातिहार्य पक्ट नहीं हुआ । मालूम होता है कि जो यह शास्त्रोमे वरिणत है कि महोपवासादि तपके माहात्म्यसे प्रातिहार्य या ज्ञानातिशय हो जाते है यह मिश्या है, तप वरना व्यर्थ है ऐसे दुर्भाव न होने व सत्यश्रद्धानसे चलित न होकर प्रात्मदर्शनकी ओर बने रहनेको प्रदर्शनपरीपहजय कहते है। प्रश्न २८६- साधुके एक समयमे अधिकसे अधिक कितनी परीपहोका विजय हो जाता है ? ____ उत्तर-साधुके एक समयमे अधिकसे अधिक १६ परीपहोका विजय हो जाता है । तीन परीपहे इसलिये कम हो जाती है कि एक समयमे शीत, उपणसे एक ही होगा व निषद्या, चर्या, शय्यामे से एक ही होगा। प्रश्न २६०-परीपहजयसे क्या क्या लाभ है ? उत्तर- परीषहजयके लाभ इस प्रकार है (१) बिना दुखके अभ्यास किया हुआ ज्ञान दुःख उपस्थित होने पर भ्रष्ट हो सकता है, किन्तु दु खोमे धैर्य बनाने वाले परीपहजयके अभ्यासीका ज्ञान भ्रष्ट नही हो सकता, अन. परीपहजयसे ज्ञानकी दृढताका लाभ है । (२) कर्मोका उदय निष्फल टल जाना। (३) पूर्वस्थित कर्मोकी निर्जरा होना । (४) नवीन अशुभ कर्मोका व यथोचित शुभ कर्मोका सवर होना । (५) सदा नि शङ्क रहना । (६) आगामी भयसे मुक्त रहना । (6) धैर्य, क्षमा, सतोप आदिकी वृद्धिसे इस लोकमे सुखी रहना। (८) पापप्रकृतियोका नाश होनेसे परलोकमे नाना अभ्युदय मिलना। (९) सर्व ससार दु खोसे रहित परमानन्दमय मोक्षपद मिलना इत्यादि अनेक लाभ परीषह जयसे होते है । प्रश्न २६१-- चारित्रनामक भावसवरविशेष किसे कहते है ? उत्तर-निज शुद्ध आत्मस्वरूपमे अवस्थित रहनेको चारित्र कहते है। प्रश्न २६२-चारित्रके कितने भेद है? उत्तर-चारित्र तो वस्तुतः एक ही प्रकारका होता है, किन्तु उसके अपूर्ण पूर्ण प्रादि
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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