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________________ गाथा.४३१ २०६ प्रश्न २६४- क्षुधापरीषहजयका क्या स्वरूप है ? उत्तर- मास दो मास, चार मास, छः मास तकके उपवास होनेपर भी अथवा एक वर्ष तक आहार न करनेपर भी अथवा अनेक प्रकारकी तपस्याप्रोसे शरीर कृश होनेपर भी क्षुधावेदनाके कोरण अपने विशुद्ध ध्यानसे च्युत न होना और मोक्षमार्गमे विशेष उत्साहसे लगना सो क्षुधापरीपहजय है । ये साधु ऐसे समय ऐसा भी चिन्तवन करते है कि परतन्त्र होकर नरकगतिमे सागरी पर्यन्त क्षुधा सही। तिर्यंच पर्यायमें परके वश होकर मनुष्य पर्यायमें जेलखाने आदिमे रहकर अनेक क्षुधावेदनाये सही। यहा तो यह वेदना क्या है जब कि मै प्रात्माधीन, स्वतन्त्र हू आदि । प्रश्न २६८-तृषापरीषहजय किसे कहते है ? . उत्तर- प्रतिदिन भ्रमण करते रहनेपर भी कडुवा, तीखा आदि यथाप्राप्त भोजन करने पर भी प्रातापनयोग आदि अनेक तपस्या करनेपर भी स्नान, परिसेचन आदिका परित्याग करने वाले साधुके प्रात्मध्यानसे विचलित न होने और सतोषजलसे तृप्त रहनेको तृषापरीषहजय कहते है। प्रश्न २६६-शीतपरीषहजयका क्या स्वरूप है ? उत्तर- तीन शीत ऋतुमे हवा, तुषारके बीच मैदानमे, बनमे आत्मसाधनाके अर्थ आवास करने पर भी पूर्वके आरामोका स्मरण न करते हुए नरकादिकी शीतवेदनामोका परिज्ञान रखने वाले साधुके शीतवेदनाके कारण आत्मसाधनासे चलित न होनेको शीतपरीषहजय कहते है। प्रश्न २७०- उष्णपरीषहजय किसे कहते है ? उत्तर-- तीन ग्रीष्मकालमे तप्त मार्ग पर विहार करने पर भी, जलते हुये बनके बीच रहने पर भी एव अन्य ऐसे अनेक प्रसङ्ग होने पर भी भेदविज्ञानके बलसे समतापरिणाममे स्थिर रहनेको उष्णपरीषहजय कहते है। प्रश्न २७१- दशमशकपरीषहजय किसे कहते है ? उत्तर- डास, मच्छर, बिच्छू, चीटी आदि कीटोके काटनेसे उत्पन्न हुई वेदनाको आत्मीय आनन्दके अनुरागवश समतासे सहन करनेको दशमशकपरीषजय कहते है। प्रश्न २७२- नाग्न्यपरीषह जय किसे कहते है ? उत्तर-कामिनी निरीक्षण प्रादि चित्तको मलिन करने वाले अनेक कारणोके मिलने पर भी सहजस्वरूपके साधक नग्नस्वरूप रहनेकी प्रतिज्ञामे स्थिर रहने और निर्विकार रहने को नाग्न्यपरीषहजय कहते है। प्रश्न २७३--अरतिपरीषहजय किसे कहते हैं ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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