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________________ २०४ द्रव्यसग्रह--प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर- मेरुको चूलिकासे ऊपर लोकके अन्त तक ऊर्ध्वलोक कहलाता है। जिसकी ७ राजू सनालीमे देवोके विमान है और कई सर्वोपरि सिद्धलोक है । ऊर्ध्वलोककी सनाली मे पहिले ऊपर ऊपर ८ कल्पोमे १६ स्वर्ग है । इसके ऊपर ग्रेवेयकविमान है, इसके ऊपर अनुदिश विमान है, इसके ऊपर अगुत्तरविमान है, इसके ऊपर सिद्धशिला है और इसके आगे ऊपर सिद्धलोक है। प्रश्न २४३- प्रथमकल्पमे कैसी रचना है ? उत्तर-सुदर्शन मेरुकी चूलिकाके ऊपर १।। राजू तक प्रथम कल्प है। इस क्ल्पमे ३१ पटल है अर्थात् ऊपर ऊपर ३१ जगह विमानोकी अवस्थिति है। जैसे पहिले पटलमें मथ्यमे ऋतुनामक इन्द्रक विमान है, यह विमान मेरु चूलिकाके ऊपर बालकी मोटाई प्रमाण अन्तर छोडकर अवस्थित है। इसकी चारो दिशामोमे ६३-६३ विमान है, विदिशाग्नोमे ६२६२ विमान है, मध्यमे अनेक विमान है। ये विमान कई सख्यात योजन विस्तार वाले है और कई असख्यात योजन विस्तार वाले है। इसी तरह ऊपरके पटलोमे रचना जानना, केवल दिशावोमे व विदिशावोमे १-१ विमान कम होते गये है । प्रकीर्णक विमानोकी भी संख्या यथासम्भव कम होती गई है। उक्त ३१ पटलोमे उत्तरदिशा, आग्नेय दिशा, वायव्यदिशाको पक्तिके विमानो व आग्नेय उत्तरके बीच व वायव्य उत्तर दिशाके मध्यके प्रकीर्णक विमानोका अधिपति ईशान इन्द्र है और शेष सब विमानोका याने दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, ईशान, नैऋत-इन पांच दिशामो की पक्तिके विमानो व छहो अन्तरालोके प्रकीर्णक विमानोका अधिपति सौधर्म इन्द्र है । सौधर्म इन्द्र दक्षिणेन्द्र कहलाता है और ईशानइन्द्र उत्तरेन्द्र कहलाता है। दक्षिणेन्द्रके विमान अधिक होते है, उत्तरेन्द्रके विमान कम होते है । इन सब विमानोमे देव देविया रहती है । इन देवोकी आयु प्रायः दो सागर तककी होती है । देवियोकी आयु अनेक पल्य प्रमाण होती है । ऊपरके स्वर्गों आदिके देवोकी आयु बढती जाती है । देविया ८ कल्पो तक ही होती हैं और उनकी आयु पल्यो प्रमाण ही बढकर भी रहती है। सब देवियोकी उत्पत्ति पहिले कल्पमें ही होती है । सब विमानोमे अकृत्रिम जिनचैत्यभवन भी है । प्रश्न २४४-~-द्वितीय कल्पमें कैसी रचना है ? उत्तर---प्रथम कल्पसे ऊपर १॥ राजू पर्यन्त रहने वाले द्वितीय कल्पमे ७ पटल है। इनमें दक्षिणेन्द्र सनत्कुमार इन्द्र है और उत्तरेन्द्र महेन्द्र इन्द्र है । दक्षिण विभागका नाम सानत्कुमार स्वर्ग है और उत्तर विभागका नाम माहेन्द्र स्वर्ग है। प्रश्न २४५- तृतीय कल्पमें क्या रचना है ? उत्तर-तृतीय कल्पमे ४ पटल है-दक्षिण विभागका नाम ब्रह्म स्वर्ग है और उत्तर
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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