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द्रव्यसंग्रह - प्रश्नोत्तरी टीका
जाता है, ऐसी खोटी विक्रिया है । इनको श्रायु कमसे कम दस हजार वर्ष और अधिक से अधिक : सागरकी होती है । लडते-लड़ते शरीरके खण्ड-खण्ड हो जाते है और पारेकी तरह फिर मिल जाते है । इनकी बीचमे मृत्यु भी नहीं होती ।
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प्रश्न २३३ - जीव जिस कर्मके उदयसे नारकी होता है ?
उत्तर-- नरकायु, नरकगति श्रादि कर्मों के उदयसे जीव नारकी होता है । इन कर्मोका ar fortवभाव के श्रद्धानसे च्युत रहकर विषयोकी, लम्पटताके परिणामके निमित्तसे होता है । प्रश्न ३३४ -- नरकभवके दुःखोसे बचनेका क्या उपाय है ?
उत्तर-- निज स्वभावको प्रतोति करना नरकभवसे मुक्त होनेका उपाय है ।
प्रश्न २३५ - मध्यलोककी क्या-क्या रचनाये है ?
उत्तर- मध्यलोक एक राजू तिर्यविस्तार वाला है इसके ठोक बीचमे सुदर्शन नामक मेरूपर्वत है । यह जम्बूद्वीपके ठीक बीचमे है । जिस द्वीपमे हम रहते है यह वही जम्बूद्वीप है, इनका विस्तार एक लाख योजनका है । इस द्वीप की दक्षिण दिशामे किनारेपर जम्बूद्वीपके १/१६० भागमे भरतक्षेत्र है । इस भरतक्षेत्रके श्रार्यखण्डमे हम रहते है ।" इसके उत्तरकी श्रोर २ / १६० विस्तार मे हिमवान पर्वत है । ४/१९० विस्तारमे हेमवत्क्षेत्र है, इसमे सदा जघन्यभोगभूमि रहती है । ८ / १६० विस्तारमे महाहिमवान पर्वत है । १६ / १९० विस्तारमे हरिक्षेत्र है, यहाँ सदा मध्यम भोगभूमि रहती है । ३२ / १६० विस्तारमे निषेध पर्वत है । ६४ / १६० विस्तार मे विदेहक्षेत्र है । इसके थोडेसे देवकुरु उत्तरकुरु क्षेत्रको छोडकर जिसमे कि सदा उत्तमभोगभूमि रहती है, समस्त विदेह क्षेत्र सदा मुक्तिका मार्ग चलता रहता है तथा अनेक भव्य जीव मुक्त होते रहते है । यहाँ तीर्थकर भी सदा पाये जाते है । इसके पश्चात् उत्तरकी हो र ३२ / १६० विस्तारमे नील पर्वत है । १६ / १६० विस्तारमे रम्यकक्षेत्र है । यहाँ सदा मध्यमभोगभूमि रहती है । ८ / १९० विस्तारमे रुक्मि पर्वत है । ४ / १९० विस्तारमे हैरण्यक्षेत्र है, इसमे सदा मध्यमभोगभूमि रहती है । २ /११० विस्तारमे शिखरी पर्वत है । १ / १६० विस्तारमे ऐरावत क्षेत्र है, इसमे भरतक्षेत्रवत् रचना रहती है । भरत ऐरावत क्षेत्रो मे बीमे विजयार्द्ध पर्वत भी है । विदेहमे निषध व नीलसे मेरूके समीप तक दो-दो गजदन्त पर्वत है । कुलाचल आदि पर्वतोपर अकृत्रिम जिनभवन व जिनचैत्यालय है ।
प्रश्न २३६- - जम्बूद्वीपमे श्रागे क्या है ?
उत्तर -- जम्बूद्रीपसे आगे चारो ओर लवणसमुद्र है । इसके दोनो तरफ वेदिका है । इस समुद्रका विस्तार एक ओर दो लाख योजन है । यह चूडीके प्राकारका गोल याने वृत्त है ।
प्रश्न २३७ - लवण समुद्रके आगे क्या है ?