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________________ १५४ द्रव्यसग्रह--प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर-देव व नारकियोके आयुबन्धके अपकर्प उनकी प्रायु ६ माह शेप रहनेपर ८ बार दो विभागोमें लगा लेना चाहिये। प्रश्न १६~-एकेन्द्रियादिक असज्ञी जीवोका आयुर्वधका अपकर्ष कव होता है ? उत्तर- एकेन्द्रियादिक असज्ञी जीवोका अपकर्ष कर्मभूमियाकी तरह समस्त प्रायुके ८ बार दो विभागोमे लगा लेना चाहिये। जैसे किसीकी आयु ८१ वर्षकी है तो ५४ वर्ष होनेपर आयुबध हो सकता, तब आयुबन्ध न हो तो फिर ७२ वर्षकी प्रायुमें आयुबध हो सकता। तब न बधे तो फिर ७८ वर्षकी आयुमे प्रायुबध हो सकता, तब ८० वर्पकी उम्रमे आयुबध हो सकता । इस प्रकार पूरे ८ बार कर लेना चाहिये। प्रश्न १७- क्या एक कर्ममे आवान्तर प्रकृतियां भी हो सकती है ? उत्तर- कर्मोके जो १४८ भेद बताये गये हैं। उनरूप प्रकृतियां तो होती ही हैं यह तो स्पष्ट है, किन्तु १४८ प्रकृतियोमे किसी एक प्रकृतिमे भी प्रावातर असख्यात प्रकृतिया होती है । जैसे एक मतिज्ञानावरणको लें, उसमे घटमतिज्ञानावरण, पटमतिज्ञानावरण आदि अनेक प्रकृतिया हो जाती है। प्रश्न १८-स्थितिबध किसे कहते है ? उत्तर-जीवके प्रदेशोमे बद्धकर्मस्कन्धोकी कर्मरूपसे रहनेको, कालकी मर्यादा पड़ जानेको स्थितिबन्ध कहते है। प्रश्न १६- किस कर्मकी कितनी उत्कृष्ट स्थिति होती है ? उत्तर- ज्ञानाबरण कर्मकी ३० कोडाकोडीसागर, दर्शनावरणकी ३० कोडाकोडीसागर, मोहनीयकर्मकी ७० कोडाकोडीमागर, अन्तरायकर्मकी ३० कोडाकोडीसागर, वेदनीयकर्मकी । ३० कोडाकोडीसागर, आयुकर्मकी ३३ कोडाकोडीसागर, नामकर्मकी २० कोडाकोडीसागर और गोत्रकर्मको २० कोडाकडीसागर उत्कृष्ट स्थिति होती है। प्रश्न २०-एक कर्मप्रकृतिके जितनी कर्मवर्गणायें बधती है क्या उन सभी वर्गणामो को उक्त स्थिति होती है ? ग में 7 उत्तर-आबाधाकालके बाद किन्ही वर्गणावोकी १ समयकी, किन्ही वर्गणावोकी २ की समयकी, किन्ही वर्गणावोकी ३ समयकी इत्यादि प्रकारसे १-१ समय बढाकर उत्कृष्ट स्थिति तक लगा लेना चाहिये। प्रश्न २१-तब किन्ही वर्गणावोकी उक्त उत्कृष्ट स्थिति हुई, फिर कर्मसामान्यकी उत्कृष्ट स्थिति कैसे हुई ? उत्तर- एक समयमे जितनी कार्माणवर्गणायें बधी उनमेसे जो एक प्रकृतिकी हुई, उनमे प्रकृतिको अपेक्षा अभेद करके उस प्रकृतिको जो उत्कृष्ट स्थिति होती है उस ही का
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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