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________________ १४६ गाथा ३१ उत्तर-निस कर्मके उदयसे अच्छा स्वर हो उसे सुस्वरनामकर्म कहते है। प्रश्न १९६- शुभनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे शरीरके शुभ अवयव हो उसे शुभनामकर्म कहते है । प्रश्न १६७- वादरनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिस कर्मके उदयसे वादर शरीर हो, जो दूसरेको रोक सके व दूसरेसे रुक सके उसे वादरनामकर्म कहते है। प्रश्न १६८- पर्याप्तिनामकर्म किसे कहते है ? Swetउत्तर- जिस कर्मके उदयसे ऐसा शरीर मिले जिसकी पर्याप्ति नियमसे पूर्ण हो, शरीरपर्याप्ति पूर्ण हुए बिना मरण न हो उसे पर्याप्तिनामकर्म कहते है। प्रश्न १६६- स्थिरनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिस नामकर्मके उदयसे शरीरमें धातु उपधातु अपने-अपने ठिकाने रहे, अचलित रहे उसे स्थिरनामकर्म कहते है। प्रश्न २००-आदेयनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिस कर्मके उदयसे शरीरमे कान्ति प्रकट हो उसे प्रादेयनामकर्म कहते है। प्रश्न २०१- यश कीर्तिनामकर्म किसे कहते है ? । उत्तर- जिस कर्मके उदयसे जीवका यश और कीति प्रकट हो उसे यशःकीतिनामकर्म कहते है। प्रश्न २०२- साधारणशरीरनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिस कर्मके उदयसे एक शरीरके स्वामी अनेक जीव हो उसे साधारणशरीरनामकर्म कहते है। जैसे निगोद । प्रश्न २०३-- स्थावरनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर- जिस कर्मके उदयसे अग उपाग रहित शरीर मिले उसे स्थावरनामकर्म कहते प्रश्न २०४-दुर्भगनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे प्राणीपर अन्य प्राणियोकी अरुचि उत्पन्न हो उसे दुर्भगनामकर्म कहते है। प्रश्न २०५-- दुःस्वरनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर--जिस नामकर्मके उदयसे बुरा स्वर हो उसे दु.स्वरनामकर्म कहते है। प्रश्न २०६-- अशुभनामकर्म किसे कहते है ? उत्तर-जिस कर्मके उदयसे शरीरके असुहावने अवयव हो उसे अशुभनामकर्म कहते है।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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