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द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका है । इन्द्रियोको सुहावना असुहावना वेदन करना दोनो ही आनन्दगुणके विकार है।
प्रश्न ६२-- आनन्द स्वाभाविक परिणमन कैसे है ?
उत्तर-- आनन्दका भाव यह है-प्रा= समन्तात् नन्दतीति प्रानन्दः । सर्व ओरसे समृद्धिशाली होना सो आनन्द है । इसमे परम निराकुल अवस्था ही परम समृद्धि है, वह कर्म क्षय होनेपर होती ही है।
प्रश्न ६३-- आयुकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-जिस कर्मके उदयसे जीवन अवस्था हो और प्रभावसे मरण अवस्था हो उसे आयुकर्म कहते हैं।
प्रश्न ६४-- आयुकर्मके कितने भेद है ?
उत्तर-- प्रायुकर्मके ४ भेद है-- (१) नरकायु, (२) तिर्यगायु, (३) मनुष्यायु और (४) देवायु।
प्रश्न ६५-- नरकायुकर्म किसे कहते है ? उत्तर--जिस कर्मके उदयसे जीवका नरकभवमे अवस्थानाही उसे नरकायुकर्म कहते हैं। प्रश्न ६६-- तिर्यगायुकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-- जिस कर्मके उदयसे आत्माका तिर्यञ्चभवमे अवस्थान हो उसे तिर्यगायुकर्म कहते हैं।
प्रश्न ६७- मनुष्यायुकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिस कर्मके उदयसे जीवका मनुष्यभवमे अवस्थान हो उसे मनुष्यायुकर्म कहते है।
प्रश्न ६८-देवायुकर्म किसे कहते है ?
उत्तर-जिस कर्मके उदयसे जीवका देवभवमे अवस्थान हो उसे देवायुकर्म कहते हैं। प्रिश्न ६९- नामकर्म किसे कहते है ?
उत्तर- जिस कर्मके उद्यसे नाना प्रकार शरीर सम्बन्धी रचना हो उसे नामकर्म कहते है।
प्रश्न १००- नामकर्मके कितने भेद है ?
उत्तर-- नामकर्मके ६३ भेद है नातिनामकर्म (नरक, तिथंच, मनुष्य और देव), ५ जातिनामकर्म (एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पचेन्द्रिय), ५ शरीरनामकर्म (प्रौदारिक, AME वैक्रियक, प्राहारक, तेजस और कार्माण), ३ अङ्गोपाङ्गनामकर्म (प्रौदारिक, वैक्रियक और भाहारक), १ निर्माणनामकर्म, ५ बन्दननामकर्म (प्रौटारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्माण), ५ सघातनामकर्म (प्रौदारिक, वैक्रियक, आहारक, तेजस, कार्माण), ६ सस्थान
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