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________________ ११६ द्रव्यसंग्रह - प्रश्नोत्तरी टोका का परिमन है, इस कारण इन दोनोमे निश्चयसे कार्यकारण भाव नही है, किन्तु निमित्त " टिका कार्यकारण भाव है । - प्रश्न ८ --- द्रध्यास्रव किसे कहते है ? उत्तर - कर्मत्वरूप कार्माणवर्गणावोको कर्मस्वरूप होनेको द्रव्यासव कहते है ? प्रश्न - अजीवास्रव किसे कहते है ? उत्तर --- द्रव्यासवका ही अपर नाम अजीवासव है । द्रव्यास्रव अजीव कार्याणवर्गणाओ का परिणाम है, अतः यह अजीवासव है । • प्रश्न १०- • भावास्रव के स्वरूपमे कहे हुए "कम्म प्रसवदि" से द्रव्यास्रवका स्वरूप जान लिया जाता है, फिर द्रव्यास्रवका स्वरूप पृथक् क्यो कहा है ? उत्तर - यत् तत् शब्दसे जिसका ग्रहण हो जमीका वर्णन होता है । यहा "कम्म प्रासवदि" शब्द भावास्रवकी सामर्थ्य बतानेको कहा । प्रश्न ११ - भावास्रव और द्रव्यास के लक्षण जाननेसे लाभ क्या है ? उत्तर- यदि भूतार्थनय से भावास्रव व द्रव्यासवको समझा जाय तो सम्यग्दर्शनका लाभ होता है । प्रश्न १२ - भूतार्थनयसे ये प्रात्रव कैसे जाने जाते है ? उत्तर- इस तत्वको अगली गाथाके प्रश्नोत्तरोमे कहा जायगा, जिस अगली गाथामे 'अल्लासव व द्रव्मासवका स्वरूप बताया है । अब भावावका स्वरूप विशेषतासे कहते है- मिच्छत्ताविरदिपमादजोगकोघावोऽथ विष्णेया । कमसो पण पण परण पर दस तिय चहु कमसो भेद हु पुव्वस्स ||३०|| प्रन्वय - अथ पुन्वस मिच्छत्ताविरदिपमादजोगकोधादमो विष्णेया । पण परदसति च भेदा । अर्थ -- अब पूर्वके याने भावास्रवके मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, योग और कषाय, ये विशेष जानने चाहिये और उनके क्रमसे ५, ५, १५, ३ ओर ४ भेद भी जानने चाहियें । प्रश्न १ - मिथ्यात्वादिक भावासवके भेद है या पर्याय ? उत्तर - भावास्रव स्वय पर्याय है । मिथ्यात्वादिक भावास्रवके प्रकार (भेद ) है । भावासव कितने तरहके होते है, इसका इसमे उत्तर है । प्रश्न २ -- मिथ्यात्व किसे कहते है ? उत्तर - निज शुद्ध श्रात्मतत्त्व के कून अभिप्राय होनेको मिथ्यात्व कहते है । प्रतिकूल अभिप्राय होने व अन्य शुद्ध द्रव्योके प्रति
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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