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________________ द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका एयपदेसोवि अणू णाणाखधप्पदेसदो होदि । बहुदेसो उवयारा तेण य कामो भगति सव्वण्हू ॥२६॥ अन्वय- एयपदेसोवि अणू णाणाखधप्पदेसदो बहुदेसो उवयारा होदि, तेण य सव्वण्हू उवयारा कामो भणति । अर्थ- एक प्रदेश वाला होनेपर भी अनेक स्कन्धोके प्रदेशोकी दृष्टिसे बहुप्रदेशी उपचारसे होता है और इस ही कारण सर्वज्ञ देव परमाणुको उपचारसे अस्तिकाय कहते है। प्रश्न १-परमाणुका आकार क्या है ? उत्तर-परमाणु एक प्रदेशमात्र है, अत उसका व्यक्त आकार तो नहीं है, अव्यक्त आकार है । वह आकार षटकोण है। इसी कारण सब ओरसे परमाणुवोका बन्ध होनेपर स्कन्धमे छिद्र या अन्तर नहीं होता। प्रश्न २-परमाणु कितने प्रकारका है ? me उत्तर-परमारण व्यञ्जन पर्यायसे तो एक ही प्रकारका है किन्तु गुणपर्यायकी) अपेक्षा २०० प्रकारके होते है। प्रश्न ३-परमाणु २०० प्रकारके किस तरह होते है ? me उत्तर-परमाणुमे रूपकी पांच पर्यायोमे से कोई एक, रसकी पाच पर्यायोमे से कोई ) एक, गन्धकी दो पर्यायोमे से कोई एक, स्पर्शकी ४ पर्यायोमे से २ याने स्निग्ब रूक्षमे एक व शीत उष्णमे एक । इस प्रकार ५४५४२४४ = २०० प्रकार हो जाते। प्रश्न ४-परमाणु शुद्ध होकर,फिर अशुद्ध (स्कन्ध रूपमे) क्यो हो जाता है ? उत्तर- परमाणुके अशुद्ध होनेका कारण स्निग्ध रूक्ष परिणमन है। शुद्ध होने पर अर्थात् केवल एक परमाणु रह जानेपर भी स्निग्ध या रूक्ष परिणमन रहता ही है, अतः स्निग्ध या रूक्ष परिणमन रूप कारणके होनेसे स्कन्ध रूप कार्यका होना याने अशुद्ध होना) युक्त हो जाता है । प्रश्न ५-- शुद्ध जीव फिर अशुद्ध क्यो नही होता है ? उत्तर-जीवके अशुद्ध होनेका कारण रागद्वेप है। यह रागद्वेष चारित्र गुणका विकार है । जीवके शुद्ध होनेपर रागद्वेषका,अत्यन्त प्रभाव (अय) हो जाता है और चारित्र गुणका स्वभावरूप स्वच्छ परिणमन हो जाता है । इस तरह अशुद्ध होनेके कारणभूत राग द्वेषके न पाये जानेमे शुद्ध जीव फिर अशुद्ध नही हो सकता । प्रश्न ६-किस व्यवहारनयसे परमाणुको अस्तिकाय कहा गया है ? उत्तर-अनुपचरित प्रशुद्ध सद्भूत शक्तिरूप व्यवहारनयसे परमाणुको अस्तिकाय कहा जाता है, क्योकि परमाणु अशुद्ध स्कन्धरूप होनेकी अनुपचरित शक्ति रखता है।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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