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द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका तम्हा काया, य अत्यिकाया।
अर्थ- जिस कारण ये पूर्वोक्त पाच द्रव्य जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश है याने विद्यमान है उस कारण इन्हे "अस्ति" ऐसा जिनेन्द्रदेव प्रकट करते है और जिस कारण से ये कायके समान वहुत प्रदेश वाले है, इस कारण इन्हे काय कहते है । ये पांचो पदार्थ अस्ति और काय है, इसलिये इन्हे अस्तिकाय कहते है।
एन १- सत्का क्या लक्षण है ?
उत्तर- उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत् जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य करि युक्त हो उसे सत् कहते है । उक्त पाँचो पदार्थ उत्पादव्ययध्रौव्य युक्त हैं, इसी कारण 'अस्ति' सज्ञा उनकी युक्त है।
प्रश्न २-उत्पाद किसे कहते है ? उत्तर-नवीन पर्याय (वर्तमान पर्याय) के होनेको उत्पाद कहते है । प्रश्न ३- व्यय किसे कहते है ? उत्तर-पूर्वपर्यायके अभाव होनेको व्यय कहते है ? प्रश्न ४- जो है उसका नाश तो नही होता, फिर पूर्व पर्यायका अभाव कैसे हो
गया ?
- उत्तर-पर्याय सत् नही है, किन्तु सत् द्रव्यकी एक हालत है । पूर्वपर्यायके व्ययका तात्पर्य यह है कि द्रव्य पूर्व क्षणमे एक हालत (परिणमन) मे था अब वह वर्तमानमे अन्य परिणमनरूप परिणम गया । द्रव्यका परिणमन स्वभाव है। वर्तमान परिणमन पूर्व परिणमन नहीं है, अतः पूर्वपर्यायका व्यय हुआ।
प्रश्न ५- ध्रौव्य किसे कहते है ?
उत्तर-- अनादिसे अनन्तकाल तक पर्यायोसे परिणमते रहने याने बने रहनेको ध्रौव्य कहते है।
प्रश्न ६- काल भी तो सत् है उसे "अस्ति" मे क्यो ग्रहण नही किया ?
(उत्तर-- यहा अस्तिकायका प्रकरण है, केवल 'अस्ति' का नही है । कालद्रव्य 'अस्ति' तो है, किन्तु काल नही है, अतः पाचो द्रव्योसे अस्तिकाय बनानेमे "अस्ति" घटाया है।
प्रश्न ७- उत्पादव्ययध्रौव्य भिन्न समयमे होते है या एक ही माथ?
उत्तर-- ये तीनो एक ही साथ याने एक ही समयमे होते है, क्योकि वर्तमान परिणमन है उसे ही नवीन पर्यायकी दृष्टिसे उत्पाद कहते है और उसे हो पूर्वपर्यायका व्यय कहते है और ध्रौव्य तो सदा रहनेका नाम है ही। अनन्त पर्यायोमे जो एक सामान्य चला ही जाता है उस एक सामान्य स्वभावका ध्रौव्य निरन्तर है।