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________________ १०४ द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका अन्वय- एवं जीवाजीवप्पभेददो दव्व छन्भेय उत्त, हु कालविजुत्त पच अस्थिकाया णायव्वा । अर्थ- इस प्रकार एक जीव और ५ अजीवोके भेदसे यह सब द्रव्य ६ प्रकार वाला कहा गया है, परन्तु कालद्रव्यको छोड़कर शेष ५ द्रव्य अस्तिकाय जानना चाहिये । प्रश्न १- द्रव्य वास्तवमे क्या ६ ही होते है ? उत्तर-द्रव्य तो वास्तवमे अनन्तानन्त है क्योकि स्वरूपसत्त्व सबका भिन्न-भिन्न ही है । इसका प्रमाण स्पष्ट है कि प्रत्येक पदार्थका चतुष्टय अपने आपमे है। एक द्रव्यका चतुष्टय अन्य द्रव्यमे नही पहुचता । फिर भी जो जो द्रव्य असाधारणगुणसे भी पूर्ण समान है उनको एक-एक जाति मानकर द्रव्यको ६ प्रकारको कहा है। प्रश्न २-चतुष्टयसे तात्पर्य क्या है ? उत्तर-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन चारको यहां चतुष्टय शब्दसे कहा गया है । प्रश्न ३-द्रव्य किसे कहते है ? उत्तर-जो स्वय परिपूर्ण सत् है, एक पिण्ड है उसे द्रव्य कहते है। अथवा क्षेत्रकाल भावको एक समुदायमे द्रव्य कहते हैं । उता का कोई माई हाल ही प्रश्न ४-क्षेत्र किसे कहते है ? उत्तर-वस्तुके प्रदेशोको क्षेत्र कहते है। प्रत्येक वस्तुका कोई प्राकार होता है वह क्षेत्रसे ही होता है । इसका अपरनाम देशाश भी है। प्रश्न ५-काल किसे कहते है ? उत्तर-परिणमन याने पर्यायको काल कहते है । प्रत्येक वस्तु किसी न किसी पर्याय (हालत) मे होती है । पर्यायका अपरनाम गुणाश भी है । प्रश्न ६-भाव किसे कहते है ? उत्तर-पदार्थके स्वभावको भाव कहते है। शक्ति, गुण, शोल, धर्म, ये इसके पर्यायवाची नाम है। प्रश्न ७-कोई पदार्थ किसी अन्यके चतुष्टयरूप नहीं है इसका स्पष्ट भाव क्या ? उत्तर- एक पदार्थ दूसरे पदार्थके द्रव्यरूप नही है अर्थात् प्रत्येक पदार्थका स्वरूपसत्त्व जुदा जुदा है । प्रदेश भी जुदे जुदे है यह क्षेत्रको भिन्नता है। कोई पदार्थ किसी अन्य पदार्थको परिणतिसे नही परिणमता यह कालकी भिन्नता है । कोई पदार्थ किसी अन्य पदार्थ के गुणरूप नही होता है यह भावकी भिन्ना है। इस तरह अनेकान्तात्मक वस्तुमे रहने वाले अनेक धर्म स्याद्वादसे सिद्ध हो जाते है । प्रश्न - अनेकान्त किसे कहते है ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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