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युगबोर-निबन्धावली ३ अतिपरिचयादवज्ञा-(जनगजट १६ जुलाई १९०७) ७६२ ४. मांसभक्षणमे विचित्र हेतु-(जैनगजट ८ अगस्त १९०७) ७६४ ५ पापका बाप-(जनगजट १४ जून १९०९)
७६७ ६ विवेककी ऑख-(जनगजट २४ जुलाई १९०९) ওওও ७ मक्खनवालेका विज्ञापन-(अने० ४, ३, अप्रैल १९४१) ७८५ (५) प्रकीर्णक निवन्ध १. क्या मुनि कन्द-मूल खा सकते हैं ?-(जनहितैषी,
___ जुलाई-अगस्त १९२०) ७९२ २. क्या सभी कन्द-मूल अनन्तकाय होते हैं ?---
(जैनहितैषी जुलाई-अगस्त १९२०), ७९६ ३ अस्पृश्यता निवारक आन्दोलन--(जैनहि० जुलाई १९२१) ८०१ ४ देवगढ़के मन्दिर-मूर्तियोंकी दुर्दशा--(अने० दिस० १९३०) ८०८ ५. ऊँच-गोत्रका व्यवहार कहाँ?-(अने० २, २, दिस० १९३८) ८१५ ६ महत्वकी प्रश्नोत्तरी
८२५ ७. जैनकॉलोनी और मेरा विचारपत्र-(अने० वर्ष ५, कि०
१-२, १९४२) ८२८ ८. समाजमें साहित्यिक सद्रुचिका अभाव—(अने० ६, १) ८३७ ९. समयसारका अध्ययन और प्रवचन-(अध्वर्ष ११ कि० १२) ८४० १० भवाऽभिनन्दी मुनि और मुनि-निन्दा
(प्रथमावृत्ति, मार्च १९६५ ) ८४२ ११. न्यायोचित विचारोंका अभिनन्दन-(श्रमण, अगस्त १९६६) ८५७ १२. श्री रामजी भाई दोशी एडवोकेट-विषयक एक अनुभव
(जैनसन्देश १८ अगस्त १९६६ ) ८६५