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युगवीर-निबन्धावली के सिवाय हमारे पारमार्थिक धर्मको क्या हानि पहुँचती है ? और फिर वह हानि उस वक्त क्यो नही पहुँचती जबकि उस जातिके व्यक्ति मुसलमान या ईसाई हो जाते हैं और हम उनके साथ अस्पृश्यताका व्यवहार नही रखते ? यह सभीके सोचने और समझनेकी बात है। और इससे तो प्राय: किसीको भी इनकार नही हो सकता कि जिन अत्याचारोके लिये हम अपने विपयमे गवर्नमेन्टकी शिकायत करते हैं, यदि वे ही अत्याचार
और बल्कि उनसे भी अधिक अत्याचार हम अछूतोके साथ करते हैं, तो हमे यह कहने और इस बातका दावा करनेका कोई अधिकार नहीं है कि हमारे ऊपर अत्याचार न किये जायं, हमे बरावरके हक दिये जायें अथवा हमे स्वाधीन कर दिया जाय। हमे पहले अपने दोषोका सशोधन करना होगा, तभी हम दूसरोके दोपोका संशोधन करा सकेंगे । भले ही हमारे पुराने सस्कार और हमारी स्वार्थ-वासनाएं हमे इस बातको स्वीकार करनेसे रोकें कि हम अछूतोपर कुछ अत्याचार करते हैं, और चाहे हम यहाँ तक कहनेकी घृष्टता भी धारण करे कि अछूतोके साथ जो व्यवहार किया जाता है, वह उनके योग्य ही हैं और वे उसीके लिये बनाये गये हैं, तो भी एक न्यायो और सत्यप्रिय हृदय इस बातको स्वीकार करनेसे कभी नहीं चूकेगा कि अछूतोपर अर्सेसे बहुत बड़े अन्याय और अत्याचार हो रहे हैं और इसलिये हमे अब उन सबका प्रायश्चित्त जरूर करना होगा।
अन्तमे मैं अपने पाठकोसे इतना फिर निवेदन कर देना चाहता हूँ कि वे अपने पूर्व-संस्कारोको दबाकर बडी शाति और गम्भीरताके साथ इस विपयपर विचार करनेकी कृपा करें और