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क्या मुनि कदमूल खा सकते हैं ?
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परन्तु आजकलके श्रावकोका त्यागभाव बडा ही विलक्षण मालूम होता है, वह मुनियोके त्यागसे भी बढा हुआ है ? मुनि तो अग्नि द्वारा पके हुए कद-मूलोको खा सकते हैं, परन्तु वे गृहस्थ जो छठी प्रतिभा तो क्या पहली प्रतिभाके भी धारक नही हैं उनके खानेसे इनकार करते हैं, इतना ही नही बल्कि उनका खाना शास्त्र-विहित नही समझते । यह सब अज्ञान और रुढिका माहात्म्य है ||
१ जैन हितैपी, भाग १४, अक १०-११, जुलाई-अगस्त १९२०