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युगवीर-निवन्धावली धर्म पर विश्वास नही करता । यही वजह है कि भारतकी प्रायः सभी जातियोमेसे पचायती बल उठ गया है और उसके स्थान पर अदालतोकी सत्यानाशिनी मुकद्दमेबाजी बढ गई है, क्योकि मुखिया और चौधरियोने लोभके कारण ठीक न्याय नही किया और इसलिये फिर उस पचायतकी किसीने नही सुनी।
भारतवर्षसे इस पचायती बलके उठ जाने या कमजोर हो जानेने बहुत बडा गजब ढाया और अनर्थ किया है। आजकल जो हजारो दुराचार फैल रहे हैं और फैलते जाते हैं वह सब इस पचायती बलके लोप होनेका ही प्रतिफल है। पचायती बलके शिथिल होनेसे लोग स्वच्छद होकर अनेक प्रकारके दुराचार
और पापकर्म करने लगे और फिर कोई भी उनको रोकनेमें समर्थ न हो सका। अदालतोके थोथे तथा नि सार नाटकोका भी इस विषयमे कुछ परिणाम न निकल सका।
अफसोस | जो भारत अपने आचार-विचारमे, अपनी विद्याचतुराई और कला-कौशलमे तथा अपनी न्यायपरायणता और सूक्ष्म अमूर्तिक पदार्थों तककी खोज करनेमे दूर तक विख्यात था और अन्य देशोके लिये आदर्श स्वरूप था वह आज इस लोभके वशीभूत होकर दुराचारो और कुकर्मोकी रंगभूमि बना हुआ है, सारी सद्विद्यायें इससे रूठ गई हैं और यह अपनी सारी गुण-गरिमा तथा प्रभाको खोकर निस्तेज हो बैठा है !! एक मात्र विदेशोका दलाल और गुलाम बना हुआ है ।।
जबतक हमारे भारतवासी इस लोभ कषायको कम करके अपनी अन्यायरूप प्रवृत्तिको नही रोकेंगे और जब तक स्वार्थत्यागी बनना नही सीखेंगे तबतक वे कदापि अपने देश तथा समाजका सुधार नहीं कर सकते हैं और न ससारमे ही कुछ सुखका अनुभव कर सकते हैं। क्योकि सुख नाम निराकुलताका