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युगवीर - निबन्धावली
बड़े ही सरल स्वभाव एवं उदार विचारके एक सौजन्यपूर्ण विद्वान् थे, परके थोडेसे भी उपकारको बहुत करके मानते थे, दूसरो के कष्टोको देख कर उनका हृदय दयासे द्रवीभूत हो जाता था और वे उनको कही से सहायता प्राप्त करानेका भरसक यत्न किया करते थे । अपने जीवन के उत्तरार्धमे यद्यपि वे बराबर अर्थ - उन्होने कभी किसी से
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संकट मे चलते रहे हैं परन्तु उसके लिये याचना नही की, वे याचनाको अपने लिये गौरवकी वस्तु नही - समझते थे । एक बार पूज्य वर्णीजीने साहू शातिप्रसादजीको प्रेरणा करके उनके लिये कुछ आर्थिक व्यवस्था कराई थी. जिससे उनके रहने के लिए मकानकी सुविधा हो गई थी । साहूजी तथा वर्णीजीके इस उपकारका वे वरावर स्मरण करते रहे हैं ।
एक वार वमन द्वारा उनके मुँहसे बहुत रुधिर गिरा था, जिससे वे अवस्थ हो गये थे। किसी सज्जनने साहूजीको उसकी सूचना की तो उन्होने एक वर्ष के लिये १००) रु० मासिककी सहायता नियत कर दी, जो बरावर समयपर उन्हे पहुँचती रहो । सहायताकी समाप्ति के पांच महीने बाद जब पंडितजी बहुत बीमार पड़े और सल्लेखना तकका विचार करने लगे तव उसकी खबर पाकर मैंने साहू शान्तिप्रसादजीको सहायता के पुन. चालू कर देनेकी प्रेरणा की और साथ ही यह भी लिखा कि पांच महीने जो सहायता बन्द रही है वह भी उन्हें भिजवा दी जाय। साहूजोने मेरे इस लिखनेको मान देकर तुरन्त ही १००) रु० मासिक की सहायता तार द्वारा चालू कर दी और बादको ५००) रु० भी भेज दिये, जिसके लिये मैं उनका आभारी हूँ । इस सहायताको पाकर पडितजोके हृदयमे नई आशाका सचार हुआ, उनके रोगका शमन हुआ और वे स्वाध्यायादि धर्म-साधन तथा साहित्य