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________________ पं० चैनसुखदासजीका अभिनन्दन : १३ : ____ मुझे यह जानकर बडी प्रसन्नता हुई कि जयपुरके प्रसिद्ध विद्वान श्री चैनसुखदासजीके लिए जयपुर-समाजकी ओरसे अभिनन्दनका आयोजन हो रहा है। अपने सच्चे सेवको एवं उपकारियोके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उन्हे श्रद्धाञ्जलि अर्पित करना जोवित समाजका एक लक्षण है । ऐसा करके समाज अपने ऋणसे कुछ उऋण ही नहीं होता, बल्कि नये समाजसेवकोको उत्पन्न करने में भारी सहायक होकर अपने भावी हितकी बुनयाद भो डालता है। पडितजीने जयपुर समाजके लिए बहुत कुछ किया है। उनके द्वारा वहाँ शिक्षा और सदुपदेशका कार्यक्रम बरावर चलता है। जयपुरकी पुरानी सस्कृत पाठशालाको वर्तमानमे जन संस्कृत कालेजका रूप दे देना, और उसे गवर्नमेटसे Recognise करा लेना उन्हीके सत्प्रयत्नोका मूल है। ऐसी स्थितिमे जयपुर-समाजका यह आयोजन उचित ही है और अपनी पुरानी कोतिको पुनरुज्जीवित करनेवाला है। गत वर्षसे मुझे पडितजीका साक्षात् परिचय प्राप्त हुआ है और मैने कई दिन उनके साथ जयपुर तथा श्रीमहावीरजी आदि मे विताये हैं। निकटसे देखनेपर वे मुझे बडे ही भद्रपरिणामी, विद्याव्यसनी, सेवाभावी और सादा रहन-सहनके प्रेमी एव सच्चरित्र मालूम हुए हैं। उनके विचार उदार है और वे साथ हो विचार-सहिष्णु भा हैं। ललित व्याख्यान देनेकी कला उन्हे आती है, और वे सुलेखक होने के साथ-साथ निर्भीक समालोचकके पदको भी प्राप्त है। सबके काम आते हैं, सबसे प्रेम
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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