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युगवीर- निवन्धावली
(घ) जिसने जैनजागृतिको जन्म दिया, सोते हुओको जगाया, उन्हे उनके कर्तव्यका बोध कराया और कर्तव्य पालनमे निरन्तर सावधान किया ।
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(ड) जिसके उदित होते ही जैन कमलवनोमे हलचल मच गई— मुद्रित पकजोने निद्रा त्यागो, आलस्य छोड़ा, वे विकसित हो उठे, अविकसित कलियाँ विकासोन्मुख वन गईं, सर्वत्र सौरभ छा गया और उससे आकर्षित होकर प्रेमी भ्रमरगण मँडराने तथा गुन-गुनाने लगे ।
(च) जिसने लोकहृदय - भूमिपर पढे और धूलमे दबे जैन बीजोको अंकुरित किया, अकुरोको ऊँचा उठाया - बढाया, उन्हे पल्लवित पुष्पित तथा फलित होनेका अवसर दिया ।
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(छ) जिसने मुरझाए हुए निराशहृदयो मे जीवनीशक्तिका संचार किया, मिथ्या भयको भगाया और रूढियोके बीहड जंगलसे निकलकर निरापदस्थानको प्राप्त करनेकी ओर संकेत किया । (ज) जिससे तेज और प्रकाशको पाकर लोक- हृदयोमे स्फूर्ति उत्पन्न हुई, जीवन - ज्योति जगी, कुरीतियाँ मिटी और समाजमे सुधारकी ओर काम ही काम दिखलाई देने लगा - सुधारकी लहर सर्वत्र दौड गई ।
(झ) जिसे एक दो बार प्रकाश-विरोधिनी काली काली घटाओने आ घेरा और उसकी गतिको रोकना चाहा, परन्तु जो आगेको ही बढता चला गया। जिसने उन काली घटाओपर ही अपना तेज और प्रकाश फैला दिया, अपनी किरणोसे उन्हें बेचैन बना दिया --- वे तप्तायमान होगईं, उद्विग्न हो उठी, रो पडी और आखिर छिन्न-भिन्न हो गई । इस तरह उन लोगोको पुन प्रकाश मिला जो कुछ समयके लिये प्रकाशसे वचित हो गये थे ।