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________________ श्रीदादीजी ७०१ सेवामें आप बहुत दक्ष हैं। आपमे पुरुषो जैसा पुरुषार्थ और वीरो जैसी हिम्मत तथा हौसला रहा है। चार-चार भैसो तक की धार आपने अकेले एक साथ निकाली है। जिस कामके लिए पुरुष भी उकता जाय उसको आप सहज साध्यकी तरह सम्पन्न करती रही हैं। इस वृद्ध अवस्थामे भी आपका इतना पुरुषार्थ अवशिष्ट है कि आप भोजन बना लेती है, चक्की चला लेती हैं और गाय-भैसको दुहने तथा दूध-दहीके बलोनेका काम भी कर लेती हैं। साथ ही एक आश्चर्यकी बात यह है कि अगोमे बहुत कुछ शिथिलता आ जाने और शरीरपर झुर्रियाँ पड जानेपर भी आपके सिरका एक भी बाल अभी तक सफेद नही हुआ है। ___कोई ४५ वर्षकी अवस्थामे आपको वैधव्यकी प्राप्ति हुई, उसके छ वर्ष बाद ही आपका देवकुमार-सा इकलौता पुत्र 'प्रभुदयाल' भी चल बसा | जो बहुत ही बुद्धिमान तथा साधुस्वभावका था। उससे थोडे ही दिन बाद आपकी पुत्री 'गुणमाला' बाल-विधवा होगई । और फिर आपकी पुत्रवधू भी २-३ वर्षकी पुत्री 'जयवन्ती' को छोडकर चल बसी ।। इससे आपके ऊपर भारी सकटका पहाड टूट पडा। परन्तु इस दु खावस्थामे भी आपने धैर्य तथा पुरुपार्थ नहीं छोडा, कर्त्तव्यसे मुख नही मोडा और आप मर्दोकी भाँति बराबर निर्भय हे कर जमीदारीके कार्य-सचालनमे लगी रही। पुत्री गुणमाला तथा पोतो जयन्तीको शिक्षा देना भी अव आपका ही कर्तव्य रह गया था, जिसकी ठीक पूर्ति दोनोको घरपर रखनेसे नही हो सकती थी। अत: ओपने दोनोको मेरे पास देवबन्द शिक्षाके लिए भेज दिया। जब मेरी धर्मपत्नीका
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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