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________________ ६९८ युगवीर- निवन्धावली अपनाकर वीरशासन के सच्चे उपासक बनने तथा वीरशासन के प्रचार कार्यमे सबको मिलकर एक हो जानेकी आवश्यकता व्यक्त की । समय अधिक हो जानेसे सभापतिजीने थोडेमे ही हितकी बात सुझाई, अपनी-अपनी त्रुटियोको शोधने, मिलकर कार्य करने और बोद्धसाहित्यकी तरह जैन- साहित्यको सर्व भाषाओं मे प्रकट करनेकी आवश्यकता बतलाई । आजकी इस कार्रवाईका दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनो सम्प्रदायोपर अच्छा प्रभाव पडा और परस्पर भ्रातृभाव कुछ उमड़ा हुआ और उत्सुक-सा नजर आया । रात्रिको बेलगछिया के सभामण्डपमे अनेक विद्वानोके भाषण हुए, तदनन्तर हिन्दुला सशोधन समिति के सामने जैनमाँगोको उपस्थित करने, और वर्णी गणेशप्रसादजीकी हीरकजयन्तीका अभिनन्दन करने के रूपमें दो प्रस्ताव पास किये गये और फिर धन्यवाद तथा आभार प्रदर्शनादिके अनन्तर महोत्सवकी कार्रवाई 'भगवान महावीरकी जय' के साथ समाप्त की गई। सबसे बड़ा काम इस महोत्सव के अवसरपर श्रीमती पंडिता चन्दाबाईके सभापतित्वमे महिला परिषदकी अच्छी सफल बैठक हुई, कितने ही विद्वानोने मिलकर एक विद्वत्परिषदकी स्थापना की, तीर्थक्षेत्रकमेटीकी मीटिंग होकर उसके सुधारका बीज बोया गया और उसके लिये पांच लाख रुपये के स्थायी फण्डकी तजवीज की गई, जिसमे से दो लाख के करीबके वचन मिल गये । प्रो० हीरालालजीके साथ उनके मन्तव्यो के सम्बन्धमें विद्वत्परिषद्की कछ महत्वपूर्ण चर्चा हुई है । और सर सेठ हुकुमचन्द तथा सेठ गंभीरमल पाड्याका पारस्परिक विरोध मिटकर सम्मिलन भी हुआ
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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