________________
कलकत्तेमें वीरशासन महोत्सव
५१०००) रु० की रकम श्रद्धाञ्जलिके रूपमें अर्पण की, जो अनेक दृष्टियोसे बडी मूल्यवान है। सेठ गजराजजीकी ओरसे ३१ हजारकी रकमकी घोषणा हुई। इस शुभ समाचारसे सारी सभामे आनन्द छा गया और उत्साहकी लहर दौड़ गई। तदनन्तर भारतके सभी भागोसे आए हुए देशके प्रतिष्ठित जैनेतर विद्वानोके सन्देशोको बाबू लक्ष्मीचन्द्रजी जैन एम० ए० ने सक्षेपमे सुनाया और फिर सभापति महोदय सर सेठजीने अपना भाषण पढा, जो अनेक दृष्टियोसे महत्वपूर्ण था और जिसमे वीरशासनकी विशेषताओ तथा तत्सबधी महत्वका दिग्दर्शन कराते हुए उसके प्रति सक्षेपमें अपने कर्तव्यपालनका अच्छा निर्देश किया गया है। इसके बाद डा० कालीदास नाग एम० ए० का भ० महावीरकी सेवाओ और उनके अहिंसादि शासनकी महत्ताके सम्बन्धमे एक बडा ही महत्वपूर्ण आकर्षक भाषण हुआ, जो खूब पसन्द किया गया।
ता० २ नवम्बरको सुबह जैन-भवनमे जैनधर्म परिषद्का जलसा बाबू अजितप्रसादजी एम० ए० लखनऊके समापतित्वमे हुआ, जिसमे प० कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने 'भ० महावीरका अचेलक धर्म' नामका निबन्ध पढना शुरू किया, जो विषयकी दृष्टिसे ऐतिहासिक एव महत्वपूर्ण था, परन्तु स्वागताध्यक्षने उसे कुछ अप्रासगिक तथा उस ऐक्यमें बाधक समझकर जो दिगम्बर और श्वेताम्बर समाजोमे इस महोत्सवके सम्बन्धमे वहाँ सम्पन्न हुआ था। इससे विद्वानोमे असन्तोषकी कुछ लहर तथा गडबड़ीसी पैदा हुई। फिर जैनेन्द्रजीका भाषण हुआ।
रात्रिको बेलगछियाके सभामण्डपमे डा० सातकौडी मुकर्जीके सभापतित्वमें जैनदर्शन परिषद्का अधिवेशन हुआ जिसमे न्याया