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कलकत्ते में वीरशासन- महोत्सव
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जनता से खचाखच भर गया । उस दिन यह समझ कर कि जलूसके कारण जनता थकी हुई होगी, रात्रिके समय कोई विशेष तथा भारी प्रोग्राम नही रक्खा गया था । परन्तु उत्सुक जनसमूहको देखकर महसूस हुआ कि उस रात्रिको विद्वानो के भाषणादिरूपमे यदि कोई अच्छा प्रोग्राम रक्खा जाता तो वह खूब सफल होता । अस्तु, दो विद्वानोके भाषण हुए और फिर कविसम्मेलन का साधारण-सा जलसा करके तथा अगले दिनका प्रोग्राम सुनाकर कार्रवाई समाप्त की गई। तदनन्तर मन्दिर मे श्रीजिनेन्द्रमूर्तिके सम्मुख कीर्तन प्रारम्भ हुआ, जिसमे सेठ गजराजजीके नृत्यपर सबकी आँखें लगी हुई थी और श्रीवीर जिनेन्द्र तथा वीरशासनकी जय-जयकार हो रही थी ।
१ ली नवम्बरको सुबह 8 से ११|| तक जैन भवनमे स्वागत समिति और आगत प्रतिनिधियोका एक सम्मेलन सेठ गजराजजीके सभापतित्वमे हुआ, जिसमे वीरशासन महोत्सवकी सफलता और कलकत्तामे उसकी एक यादगार कायम करने आदिके विषयमे विचार-विमर्श किया गया और इस सम्बन्धमे अनेक विद्वानो के भापण हुए, जिनमें उन्होने अपने-अपने दृष्टिकोणको स्पष्ट किया। तीसरे पहर बेलगछियामे अजैन विद्वानो के लिये एक टी- पार्टी की योजना की गई, जिसमे लगभग ५०० प्रतिष्ठित विद्वानो तथा स्कॉलरी आदिने भाग लिया और जो ast ही शान के साथ सम्पन्न हुई । जैनियो के लिये सध्या भोजनका प्रबन्ध भी बेलगछियामे ही था। टी पार्टी और भोजन के अन्तर सध्या समय झडाभिवादनकी रस्म सर सेठ हुकमचन्दजी प्रधान सभापति महोत्सवने अदा की। इस अवसरपर विभिन्न समाजो और विभिन्न धर्म-सम्प्रदायो के १७ कालिज - छात्राओने