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कलकत्तमें वीरशासन-महोत्सव : ७:
बोरशासनके जिस सार्धद्वयसहस्राब्दि-महोत्सचकी अर्सेसे आवाजें सुनाई पड़ रही थी, योजनाएं हो रही थी और प्रतीक्षा की जा रही थी वह आखिर कलत्तामे ३१ अक्तूबरसे ४ नवम्बर तक बड़ी सफलताके साथ हुआ। यह आशा नही थी कि राजगृहके लिये सकल्पित यह महोत्सव कलकत्तेमे इतने अधिक समारोहके साथ मनाया जा सकेगा। परन्तु यह इस महोत्सवको हो विशेपता है जो कलकत्तेवालोके मुंहसे भी यह कहते हुए सुना गया कि इतना बडा महोत्सव कलकत्तेमे इससे पहले कभी नही हुआ। अनेक प्रतिबन्धोके होते हुए भी दूर-दूर से सभी प्रान्तोकी जनता अच्छी सख्यामे उपस्थित हुई थी, प्रतिष्ठित सज्जनो और विद्वज्जोका अच्छा योग भिडा था, सभी वर्गोके चुने हुए विद्वानोका इतना बडा समूह तो शायद ही समाजके किसी प्लेटफार्म पर इससे पहले कभी देखनेको मिला हो। ____ ता० ३१ को रथयात्राका शानदार जलूम दर्शनीय था। दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनो सम्प्रदायोका जलूस मिलकर १॥ मीलके करीब लम्बा था। जलूसमे रथो, पालकियो, चांदी सोने के सामानो, ध्वजाओ, बेंडबाजो और दूसरी शोभाकी चीजोकी इतनी अधिक भरमार थी कि दर्शकोकी दृष्टि भी लगातार देखते २ थक जाती थो, परन्तु देखनेकी उत्सुकता बन्द नही होती थो-चीजोमे अपने-अपने नये रूप, रगढग और कला-कौशल आदिका जो आकर्षण था वह जनताको अपनी ओर आकर्षित और देखनेमे उत्सुक किये हुए था। लाखोकी जनता