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युगवीर-निवन्धावली हृदयोमे वीरशासनके अवतारकी पुण्यवेलाका महत्व घर किये हुए था, जो उसी समय विपुलाचलपर पहुँचकर वीरशासनके अवतार समयकी कुछ अनुभूति करना चाहते थे और वीरशासनकी उसके उत्पत्ति समय तथा स्थानपर ही पूजा करने के इच्छुक थे, उन्होने अपना निश्चय नहीं बदला और इसलिये वे नियत समयपर विपुलाचलपर पहुँचकर उस अपूर्व दृश्यको देखनेमे समर्थ हुए, जो वारवार देखनेको नहीं मिलता।
श्रावण कृष्ण प्रतिपदा ७ जुलाईकी थी और राजगृहमे कोई १५ दिन पहलेसे वर्षाका प्रारम्भ हो गया था। ४ जुलाई सुबहको जब मैं मंत्रीजी सहित गजगृह पहुँचा तो खूब वर्षा हो रही थी, वहाँकी रेल्वे भी छलनीकी तरह टपकती थी। और चारो तरफ पानी ही पानी भरा हुआ था। ५ जुलाईको पर्वतकी यात्रा करते समय वर्षा आ गई और सारी यात्रा खूब पानी बरसनेमे ही आनन्दके साथ की गई और उससे कोई वाधा उत्पन्न नही हुई। ६ ता० को बादलोका खूब प्रकोप था। रात्रिके समय तो इतने घने घिरकर आ गये थे और विजलीकी भारी चमकके साथ ऐसी भयकर गर्जना करते थे कि लोगोको आशंका हो गई थी कि कही ये कोई विघ्न-बाधा तो उपस्थित नहीं करेंगे। उसी समय यह प्रश्न होनेपर कि यदि कल प्रात काल भी इसी प्रकार वर्षा रही तो पर्वतपरके प्रोग्रामके विषयमे क्या रहेगा ? उपस्थित जनताने बड़े उत्साहके साथ कहा कि चाहे जैसी वर्षा क्यो न हो पर्वतपरका प्रोग्राम समयपर ही पूरा किया जायगा । इधर कार्यका दृढ सकल्प और उधर वर्षाके दूर होने की स्थिर हार्दिक भावना, दोनोके मिलने पर ऐसी आश्चर्यजनक घटना घटी कि बादलोने प्रातःकाल होनेसे पूर्व ही अपनी