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युगवार निबन्धावला
भी उनसे जितना बन सका है वे ऐसी अवस्था में भी समाजको सेवा पारते रहे हैं, कम्पवात के कारण स्वयं अपने हाथसे नही लिस सके तो बोनकार लिनाते रहे हैं। यह उनकी भावनाका ज्वलन्त उदाहरण था। उनके स्थानकी शीघ्रपूर्ति होना वजा कठिन जान पडता है। ऐसे परोपकारी समाज मेवीका समाज जितना गुणगान करे और आभार प्रकट करे वह सब थोडा है । उनकी यादमे तो कोई अच्छा स्मारक बनाना चाहिये था। मालूम नही, दि० जैन परिपद्ने उनका स्मारक बनानेकी जो बात उठाई थी वह फिर खटाई में क्यो पड गई। दो वर्ष होगये ।।
१. २४-३-१९४४ ।