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हेमचन्द्र स्मरण
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हेमके पत्र के साथ ४ मईका लिखा हुआ प्रेमोजीका पत्र भी था, जिसमे उन्होने मुझे यह प्रेरणा की थी कि-"अंग्नेजीका कोई अनुवाद हो तो, आप उससे ( हेमसे ) अवश्य कराइये । आपके लिखनेसे वह अवश्य कर देगा।' हेमने यह पत्र पढ लिया और उसे प्रेमोजोका उक्त लिखना खटका । अतः अपने पत्रके अन्तमे पहलेसे ही बन्द लगाते हुए मुझे लिखा :
"कृपया आप मुझसे अनुवाद करने का आग्रह न कीजियेगा, अनुवाद करनेसे मुझे बहुत घृणा है। यदि कोई मेरा अनुवादित लेख छपता है तो मुझे अपनी असमर्थतापर ( स्वतन्त्र लेख लिखनेकी ) बहुत शर्म आती है। 'विशाल भारत' वाला लेख' मैने एक साल पहले पिताजीके घोर आग्रहसे अग्रेजीपरसे किया था, अनुवाद करनेसे मेरे मनपर चोट पहुँचतो है।"
इन पंक्तियोपरसे हेमकी उस समयकी स्वभिमानी प्रकृतिका और भी कितना ही पता चल जाता है। परन्तु अनुवादसे घृणा, शर्म और चित्तपर चोट पहुँचनेको बात बादको कुछ स्थिर रही मालूम नही होती, क्योकि मुझे भी फिर दो अग्रेजी लेखोका अनुवाद भेजा गया है और अनुवाद भी करके प्रकाशित किये गये हैं। .
हेमके लेखपर जो रिमार्क प्रेमीजीने मुझे भेजा था वह ऊपर दिया जा चुका है। जिस समय हेम अपने लेखको सशोधनादिके लिये वापिस मांग रहा था उस समय ६ अप्रैलके पत्रमे प्रेमीजीने लिखा था-'हेमके लेखको संशोधन-परिवर्तनके साथ छाप दीजिएगा। उसकी ऊँटपटाग बातोपर ध्यान मत दीजिए।" और
१. इस लेख ( मगलमय महावीर ) को अनेकान्तमें छापनेकी प्रेरणा प्रेमीजीने अपने ९ अप्रैलके पत्रमें की थी।