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युगवीर- निबन्धावली
लिखे गये आपके कितने ही पत्र आध्यात्मिक पत्रावलियोके रूप मे प्रगट हो रहे हैं और जगत के जीवोका अच्छा उपकार कर रहे हैं। आपमे कषायोकी मन्दता, हृदयकी उदारता, समता, भद्रता, निर्वेदता और दयालुता आदि गुण अच्छे विकासको प्राप्त हुए हैं । तत्व-ज्ञानके साथ-साथ आपका चारित्र्यवल खूव वढा चटा है । वाह्य मुनि न होते हुए भी आप भावसे मुनि हैं अथवा चेलोपसृष्ट मुनिके समान हैं । आप मुनि चेपको धारणकर सकते थे, परन्तु धारण करके उसे लजाना आपको इष्ट नही है । आप तभी उसे धारण करना अच्छा समझते हैं जबकि शरीर नग्न रूपसे जगलमे रहने की इजाजत दे । अनगारी बनकर मन्दिर - मकानो मे निवास करना आपको पसंद नही है | आप उसे दिगम्बर मुनि पदके विरुद्ध समझते हैं । हार्दिक भावना है कि आपको अपने ध्येयमे शीघ्र सफलताकी प्राप्ति होवे और आप अपनी आत्मसिद्धि करते हुए दूसरोकी आत्म-साधना मे सब प्रकार से सहायक वनें । '
१ अनेकान्त पर्ष ४, कि० ९, अक्टूबर १९४१ ।