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युगवीर-निवन्धावली
स्वत: अधिकार प्राप्त है । इन्ही सब बातोको लेकर एक शास्त्रीय उदाहरणके रूपमे यह लेख लिखा गया है। आशा है कि हमारे जैनो भाई इससे जरूर कुछ शिक्षा ग्रहण करेंगे और विवाहतत्वको समझ कर, जिसके समझनेके लिये 'विवाह-समुद्देश्य' नामक निबन्ध' भी साथमे पढना विशेष उपकारी होगा, अपने वर्तमान रीति-रिवाजोमे यथोचित फेरफार करने के लिये समर्थ होगे। और इस तरह कालचक्रके आघातसे वचकर अपनी सत्ताको चिरकाल तक यथेष्ट रीतिसे बनाये रक्खेगे।"
लेखके इस अश अथवा शिक्षा-भागसे स्पष्ट है कि लेखका प्रतिपाद्य विपय, आशय और उद्देश्य वह नहीं है जो समालोचकजीने प्रकट किया है इसमें कही भी यह प्रतिपादन नही किया गया और न ऐसा कोई विधान किया गया है कि गोत्र, जाति-पाति, नीच-ऊँच, भगी, चमार, चाण्डालादिके भेदोको उठा देना चाहिये, उन्हे मेटकर हरएकके साथ विवाह कर लेना चाहिये, चाहे जिसकी कन्या ले लेनी चाहिये, अथवा भगी, चमार आदि नीच मनुष्योके साथ विवाह कर लेनेमे कोई हानिनही है, और न कहीपर यह दिखलाया गया अथवा ऐसी कोई आज्ञा दी गई है कि आजकल अपनी ही बहिन-भतीजीके साथ विवाह करलेनेमे कोई क्षति नही है, मन्य गोत्रकी कन्या न मिलनेपर उसे कर लेना चाहिये-वल्कि बहुत स्पप्ट शब्दोमे वसुदेवजीके समय और इस समयके रीति-रिवाजो-विवाहविधानोमे-"जमीन आसमानका-सा अन्तर" वतलाते हुए, उनपर एक खासा विवेचन उपस्थित किया गया है और उसमे
१ यह निवन्ध अव युगवीर-निवन्धावली प्रथम खण्डम प्रकाशित हो गया है।